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गुरुओं /शिक्षकों के नाम ….

शब्दों की दुनिया
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गुरुओं /शिक्षकों के नाम ….

भारतीय संस्कृति , भारतीय संस्कार और भारत का गौरवशाली इतिहास आज भी विश्व के लिए प्रकाश -स्तम्भ बन कर मार्गदर्शक का कार्य कर रहा है . भारतीय मेधा ने समय समय पर मानवीय मूल्यों के साथ साथ शिक्षा , विज्ञानं ,चिकित्सा आदि क्षेत्रों मेंमील के पत्थर स्थापित किए हैं . आज भी संसार के कोने कोने में फ
ैले भारतीय अपने गौरव शाली अतीत की परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं .
निश्चित ही यह भी कहा जा सकता है कि समाज में परिवर्तन अवश्यम्भावी है .निरंतर परिवर्तन प्रक्रिया हमारे मूल्यों में ह्रास का कारण भी बनती है . महर्षि वाल्मीकि ,महर्षि पतंजली , आचार्य सुश्रुत , आर्य भट्ट, आचार्य चाणक्य , गुरु द्रोण, महर्षि दयानंद , स्वामी विवेकानंद , डॉ. राधा कृष्णन आदि की गुरु परम्परा का भारतवर्ष आज शिक्षा क्षेत्र में आत्म मुग्धता से ग्रस्त हो गया है .इसी कारण शिक्षा के क्षेत्र में गिरावट आई है . गुणवत्ता परक शिक्षा देने में कहीं न कहीं चूक हो रही है . शिक्षा का व्यवसायी करण मूल्यों व कर्तव्यों पर भारी पड़ रहा है . हमें फिर से अपनी सुप्त क्षमताओं को जगा कर शिक्षा क्षेत्र के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना होगा . शिक्षा की लौ प्रज्वलित करनी होगी . हमें मात्र इतना ही करना है कि हम जहाँ भी हैं ,अपनी अपनी भूमिका तय कर लें . हम सबका एक एक कदम पथ की बाधाओं का समूल नाश कर देगा . समाज का कोई भी वर्ग शिक्षा से वंचित न रहे , यही हमारा प्रयास होना चाहिए . हम शिक्षित होंगे तो ही हम समर्थ होंगे , सभ्य होंगे . पथ की बाधाएँ हमारी समस्या नहीं हैं , हमारी सुप्त क्षमताएं हमारी सबसे बड़ी समस्या है .
आज समस्त भारतवर्ष अपने गुरुओं /शिक्षकों की ओर आशा पूर्ण दृष्टि से निहार रहा है . आज हमें अपने ही मानदंडों पर खरा उतरना है . हम ही नही जागे तो समाज को , देश को जगाने की बात कभी पूरी नही हो पायेगी .अशिक्षा की अंधी गुफाओं में ज्ञान- सूर्य कैसे उदित हो पायेगा ?
– प्रभु दयाल हंस

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