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क्या हिंदी सम्मानजनक भाषा के रूप में मुख्य धारा में लाई जा सकती है? अगर हां, तो किस प्रकार? अगर नहीं, तो क्यों नहीं?
हिन्दी समान्न्जनक भाषा पहले भी थी अब भी हैं और आगे भी रहेगी, अगर बात करें क्या हिन्दी-भाषा मुख्य धारा मे लाई जा सकती है? तो अभी तक के अनुभव से यही सीख मिलती हैं की हिन्दी-भाषा को मुख्य धारा मे लाना आज के संदर्भ मे असंभव सा लग रहा हैं जब भाषा बोलने मे शर्म आने लगे तब उसपर कुछ भी टिप्पड़ी करना भाषा की बेज्जती करना होगा। हाँ ये मैं जरूर कहूँगा की समय समय पर भाषा को प्रोत्शाहन देने हेतु प्रतियोगिताएं व आंदोलन भी होते रहे हैं। अगर आज से संदर्भ मे देखे तो हिन्दी ब्लॉगिंग बहुत ही चर्चित विषय बन गया हैं, पूर्ण हिन्दी मे वार्ता, सूचनाओ का आदान प्रदान व प्रतिकृया पूर्णा रूप से हिन्दी मे होने लगी हैं बल्कि अब तो सोसियल साइट भी हिन्दी-भाषा को बढ़ावा दे रहे हैं, गाँव-2 मे इंटरनेट की व्यवस्था भी हो रही हैं, ई-चौपाल इसका मुख्य उदाहरण हैं जिसके जरिये हम किसान भाइयो की बात को सुन सकते हैं। इंटरनेट के जरिये हम किसी भी भाषा को अपनी मात्र-भाषा मे बदल कर पढ़ भी सकते हैं, काफी कुछ बदलाओ आया हैं, परंतु इसका मतलब ये नहीं है की हिन्दी-भाषा मुख्य धारा मे बहने के लिए तैयार खड़ी हैं, मेरी समझ से ये सिर्फ हिन्दी को प्रोत्शाहन देना मात्र हैं।
अगर मुख्य धारा की बात करे तो मेरी समझ से पूर्ण रूप से उसी भाषा का उपयोग हो, चाहे वो पढ़ाई के क्षेत्र मे हो, व्यवसाय के क्षेत्र मे हो, नौकरी पाने के लिए हो या अन्य। जैसा की चीन और जापान मे होता हैं…………..
साक्षात्कार और उनके कार्य पूर्ण रूप से हिन्दी-भाषा मे होने चाहिए, इसका मतलब हिंदुस्तान को एक नए सिस्टम की शुरवात, नए स्तर से करनी होगी……. कुछ सवाल मैं पूछना चाहूँगा सभी पाठको से
अगर अँग्रेजी-भाषा आती हैं तो आप पैसे कमा सकते हैं। नहीं तो हिन्दी-भाषा मे तो भिखारी भी भीख मांगता हैं…. माफ करिएगा मैं भाषा का अपमान नहीं कर रहा हूँ, बस जो सच है वो कह करा हूँ। क्योकि हिन्दी-भाषा से अपने ही देश मे कोई आय का स्रोत का माध्यम नहीं दिया गया हैं तो हम क्या करें। भीख मांगे या अंगेजी शीखे??
“हम होंगे कामयाब एक दिन”
माँ की लोरी मे हूँ।
दूध की कटोरी मे हूँ।
पहले चले कदम मे हूँ।
पैजनियों की छमछम मे हूँ।
विध्यालय की पहली कक्षा मे हूँ।
परीक्षा फल की प्रतीक्षा मे हूँ।
खेल कूद हर उमंग मे हूँ।
प्यार करने वालों के संग मे हूँ।
शादी मे सज़े, हर रंगोली मे हूँ।
संग जो जा रही दुल्हन, उसकी डोली मे हूँ।
कामयाबी के हर चरण मे हूँ ।
जिंदगी से मिले हर स्मरण मे हूँ।
तेरे नए घर की, हर ईंटों मे हूँ।
तेरी हर हार, और जीतो मे हूँ।
तेरी बुढ़ापे की लाठी मे हूँ।
तेरी कंधो की झुकी, काठी मे हूँ।
तेरी काँपती उंगली मे हूँ।
मोह माया से दूर, तेरे दिल मे हूँ।
मरने पे तेरे मुह से निकले, उस राम मे हूँ।
तिथ्थि पे लिटाकर तुझे देते, आखिरी सलाम मे हूँ।
जलती तेरी उस चिता मे हूँ।
तेरे शोक मे निकले, हर आह मे हूँ।
तेरी तेरवी मे किए हर रीति रिवाज मे हूँ।
मैं कल भी थी, मैं आज भी हूँ।
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