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अच्छे दिन -थूक दिया भाई थूक दिया-सबने हम पर थूक दिया।

kushwaha
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अच्छे दिन

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–थूक दिया भाई थूक दिया-सबने हम पर थूक दिया।

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(नट कुर्ता , पैजामा पहने , मस्त चाल से दोनों हाथों  में झाडुओं को हिलाता हुआ कभी बाएं कभी दायें उछलता कूदता और मन ही मन कुछ बडबडाता सा चला आ  रहा है। थूक दिया –थूक दिया भाई थूक दिया।   नटी उसको आता देख राह रोक कर खडी हो जाती है। )

नटी – ये क्या हाल बना रखा है , कभी ली नही तों अब क्यों ली। वह भी सवेरे – सवेरे।  आज का भी धंधा चौपट ?  हाय -हाय कोई देखो तों , मेरे छैल – छबीले को क्या हो गया।  ५५ साल की साफ़ सुथरी छवी देख कर ही नगर मुखिया ने आज सवेरे नगर निगम दफ्तर बुलवाया था। सम्मान करेंगे। नगर प्रधान बनाएंगे।

(सामने की  दुकान से चाय वाला छोरा -मुन्ना , मछली बेचने वाली -मुन्नी , कल्लू- मोची , पान वाला -गुप्ता  और टेलर -असगर भागते हुए आते हैं , नट को चारों  ओर से  घेर कर दायें – बाएं , आगे – पीछे से घूर – घूर कर देखते हैं , इसी मुद्रा में नट भी घूमता रहता है और प्रश्न वाचक नजरों से  जानना चाहता है आखिर उसे क्या हो गया जों सब लोग ऐसा  व्यवहार कर रहे हो। )

नट- का- हो मुन्नी , का हो गुप्ता का , हो असगर ,  का रे कल्लू , समझत काहे ये  हमका लल्लू।  –थूक दिया भाई थूक दिया-सबने हम पर थूक दिया।

नटी – कौन -कौन थूका , हमको भी बताइये , अकेले नही तुम समझाइये।

(असगर दर्जी नट के कंधे पर हाथ रखता  है और जोर से दहाड़ता है )

असगर दर्जी – किसने किया ये हाल जरा हमें तों बताइये , बने नगर प्रधान कुर्ता न फड़वाईये।  रहते हो जिस गली में कुत्ते वहाँ काहे को जाइए।  कपडे की कीमत से मेरा क्या लेना – देना , सिलाई इसकी ५१०००/- जल्द दिलवाइए।

नट- जिंदगी भर सच बोला , मिले लालच कभी न डोला ,  विरोधी सभी अपने ,पराये भाई।  ईश कृपा पदवी है पायी।  नगर प्रमुख ने शपथ दिलायी , तेजी से शुरू करो नगर सफाई।  –थूक दिया भाई थूक दिया-सबने हम पर थूक दिया।

पान वाला -गुप्ता – (थोडा सा लंगड़ाता और हकलाता नट के कुर्ते को छूते हुए बोला ) ये पान की इतनी सारी पीक –किसने थूकी , कुर्ते का सत्यानाश कर दिया।

नट – गुप्ता भईया कोई एक थूकने वाला हो तों बताऊँ कि वो कौन था , जैसे ही नगर प्रधान की  शपथ ली , बस शुरू हो गए छींटे पडना।  जों जानता  था उसने थूका , जों नही जानता था उसने भी थूका।  मैं समझा कि इनके पास रंग नही होंगे इसलिए शुभ काम में परम्परा है की होली खेली जाये।  सो मैने बुरा भी नही माना , फिर बुरा क्यों मानू , जब नगर की ऐसी परम्परा है।  पर भईया एक बात की तारीफ़ करनी पड़ेगी कि हमारे पत्रकार भाई खामोशी से अपनी दूरी बनाए रहे , इनकी दावत अब करनी ही पड़ेगी, बहुत नाराज रहते हैं हम से।  काहे न नाराज रहें , मैं  और नटी इनको बख्सते भी तों नही।

नटी- फ़ालतू बात नही  , धीरज धरिये  . मौका मिला अब काम करिये।  रंगे सियार तों हूकेंगे , अब तलक न डरे अब क्या ख़ाक डरेंगे।

नट- साफ -सफाई मेरा अभियान , बाल नोच रहे सब बेईमान।  नगर प्रशासक सबसे आगे , सफाई मजदूर हफ्ता ले भागे। –थूक दिया भाई थूक दिया-सबने हम पर थूक दिया।

नगर प्रशासक -नगर प्रधान जब झाड़ू लगायेगा , हराम की कमाई कौन खायेगा।  अब तक खाते थे बोये बिन , इन्ही को कहते क्या अच्छे दिन।

नटी – चलें सफाई करें नगर के अन्दर , फिर चलेंगे हम सब पोर बन्दर।

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

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