kushwaha
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धर्म अधर्म
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धर्म अधर्म
देशकाल की धुरी पर
नर्तन करता हुआ
ज्ञानियों / अज्ञानियों
की गोद में
पल पल मचलता
रंग बदलता
कुछ न कुछ कहता है
युग हो कोई
नयी बात नहीं
परोक्ष / अपरोक्ष
दिल के किसी कोने में
रावण रहता है
विष वमन
घायल तन मन
चिंतन मनन
जन जन छलता है
न कर मन मलिन
न हो तू उदास
रख द्रढ़ विश्वास
अत्याचारों की
जब जब अति होती है
हरी भरी वसुंधरा
पापों से रोती है
होता कोई अवतार
अधर्म पर धर्म की
विजय होती है
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
8-10-2013
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