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मुनादी (नौटंकी ) प्रहलाद -लोकतंत्र —————— गतांक से आगे -२ ——————–

kushwaha
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मुनादी (नौटंकी )

प्रहलाद -लोकतंत्र

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गतांक से आगे -२

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नट -आसमान कहाँ गया ? जमीन भी खिसक रही है ?

नटी- आसमान भी  है सर के ऊपर और जमीन  भी है पैरों के नीचे। अंग्रेजी की जगह अमरीकन पी ली  है ?

नट – फिर आसमान दिखता क्यों नही , सब काला काला  , चारों ओर धुआं ही धुआं  – अंधकार मय भविष्य ? लड़खड़ाते कदम – रसातल की ओर जाते हुए ?

नटी – असहिष्णुता  की होली जल रही है , उसी का धुआँ  चारो तरफ फैला है।  सभी आहुति डाल रहे हैं अपनी – अपनी सामर्थ्य के अनुसार ,  दशो दिशाओं से हवाएँ  इस मानवता की चिता  को प्रज्ज्वलित कर रही है ?

नट – और जमीन ?

नटी – शाश्वत मूल्यों पर मट्ठा डालकर भूमि को भुर भुरा कर रहें हैं आने वाली नस्लों के लिए नफरत , हिंसा का संसार देने के लिए।

नट – अहिंसा के देश में हिंसा का हमला,   निष्फल हो रहा गांधी का जुमला ?

नटी -घोड़े की देखा देखी मेंढक भी नाल ठुकवा रहे है , आगे तों मिलना नही कुछ , छोड़ विकास पथ , सम्मान लौटा रहे हैं।

नट -कागज के टुकड़े में कैद सम्मान सीने से लगाए रहे , बरस दर बरस प्रहलाद को सीने  से लगाये रहे।  कागज तों लौटाया सम्मान कैसे लौटायेंगे ? घर की खेती है जब मन हुआ उगाएंगे  , जब मन हुआ चर जायेंगे।

नटी – सच कहते हो दूर की कौडी लाये ,  जैसे आयोजित हुआ सम्मान  समारोह असम्मान समारोह करवाएं। तीन तलाक कह उलटे फेरे करवाएं। भावनाओं का दहेज सूद सहित लौटाएं ,

नट –  रावण जलाया।  रावण जला ?  सच कहो क्या मन नही छला ? प्रकाश  उत्सव में अब क्या आयेंगे राम ? लंका में तों नही  करेंगे आजीवन विश्राम ? सुंगंधित हवा में खिलेगा वसंत ? होलिका में प्रहलाद का हो न जाये कहीं  अंत ?

नटी – मानवता वाद का अंत और मवाद वाद का उदय हो रहा है।  ममता सो रही प्रहलाद रो रहा है ।  पूंछे किस से ये क्यों हो रहा है , चलें शान्ति वन या चलें पोरबंदर।

क्रमशः —-

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

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