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मुनादी (नौटंकी) –सहिष्णुता
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( नट और नटी अपने खेला की तैयारी में मग्न हैं। आओ चलें पोर बंदर गीत दोनों मद्धिम स्वर में गुन गुना रहे हैं। इसी बीच रस्सी कों उठा नीचे से निकलता १०-१२ साल का बालक हरिया हवाई जहाज उड़ाने की मुद्रा में झूं झूं झूं की आवाज करता हुआ निकलता है , रस्सी में पैर फंसने की वजह से गिरता -गिरता बचता है। )
नट – हरिया ये क्या देख कर क्यों नही चलता रे , तू, सडक पर इतनी भीड़ है. बड़ी मुश्किल हमे खेला करने की जगह मिलती है। रोज ब रोज सड़क पर दुकानें बढती जा रही हैं। बेतरतीब खड़े वाहन , इनको सँभालने वाले आका भी । अति क्रमण – हर जगह -अति क्रमण। कोरट कहाँ तक सुधारे इन सब कों।
हरिया – चाचा देखत नाही कि ये ही मारे हम सडक पर मोटर नाही हवाई जहाज चला रहे हैं। न दुर्घटना का खतरा और नाही उलटी सीधी वसूली का भय।
हम सुखी सिपाही दुखी –हैं न अच्छे दिन ?
नट – अच्छा चल परे हट –बहुत बड़ा हो गया है तू।
साम वाद की सड़क पर
छलती सामंती रेल
दायें बाएं घूमती
करती वो खेल अनेक
नटी –
दाम वाद के पेड़ से
निकले वाद कई एक
मानवता गौण हुई
हिंसा से हो अभिषेक
नट-
तर्क कुतर्क हावी हुए
नही सहिष्णुता का भान
टेढी पूंछ सीधी होये नही
जा पर श्वान करे अभिमान
नटी-
गठ बंधन था चार का
खेले उनमें बस तीन
इंतजार अब हो रहा
खिचेगी कब आस्तीन
नट –
बच्चे बच्चे खेल रहे
बूढ़े हुए गमगीन
सरकार ऐसी बनी
रसगुल्ला संग नमकीन
नट और नटी समवेत सुर में गा रहे हैं।
वादी बिना हुए क्या
सुखी न हो जन आम
प्रेम से देखो गा रहे
सबके दाता हैं —-(राम , रहीम — हर मजहब के मुखिया का नाम लेने का प्रयास करता है हर कोई – हर तरफ से पत्थर , लात घूंसा से नट और नटी पर प्रहार करते हैं ? खेला का सामान तहस-नहस कर देते हैं।
(थोड़ी देर बाद — दो टिकटियों पर सहिष्णुता की अर्थी ले जाते लोग )
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
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