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दूसरा गांधी ?

kushwaha
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दूसरा गांधी ?

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बात उन दिनों की है जब लोकपाल बिल के संदर्भ में  एक जन  आंदोलन अन्ना जी चला रहे थे और जनता देश के   संसद भवन की  ओर आस लगाये बैठी थी. सभी अपनी समर्थित पार्टी  द्वारा उठाये जा रहे कदमो के प्रति दृढ़ता पूर्वक आश्वस्त थे। देश एक बार फिर निराश हुआ और मैं भी।  अन्ना जी के प्रयास ने पथ दिया पर मोड़ भी मिले.

वो सुबह कभी तो आएगी

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खुले आसमान के नीचे

एक हुजूम इकट्ठा था

तन जड़ था, मन था आंदोलित

ठंडी हवा में ओस की बूंदों को सुखाते हुए

कभी आपस में , कभी खुद से

कयास लगाते हुए

चाय की चुस्कियों के बीच

जगी आस पर

पड़ी गर्द को हटाते हुए

विश्वास , अविश्वास के हिंडोले में

अनुत्तरित प्रश्न का हल ढून्ढ रहे हैं

दूसरी तरफ हमारे रहनुमा

विशालकाय ऊँचे वातानुकूलित भवन में

अपनी विद्वता , यथा शक्ति के अनुरूप

शब्द बाण चलाते हुए

कौन से स्वार्थों की पूर्ति के लिए

अपने गिरेबान को छोड़ कर

एक दूसरे के नश्तर लगाते हुए

कभी धीरे कभी जोर से चिल्लाते हैं

वक्त आने पर बाहर निकल आते हैं

भ्रष्टाचार, शिष्टाचार का कफ़न ओढ़े

उसको दफन करने की कवायदें जारी

पहले भी हुईं थी आज भी

क्या जीत होगी हमारी

मन के किसी अँधेरे कोने में

आशा की किरण कौंधती है

घने अंधरे में जैसे जुगनू

मंजिल का पता देती है

भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लगाये हुए

जानते थे हश्र फिर भी है इंतजार

कोई मसीहा हमें दिला सके निज़ात

स्वराज तो मिला पर नहीं मिला सुराज

शायद ये भारत का दूसरा गाँधी दिला सके

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

मैं श्री नरेंद्र मोदी जी  से प्रभावित अवश्य था पर कभी ये विचार नहीं आया कि  देश की बागडोर उनके  होगी.  प्रश्न चिन्ह मोदी जी पर नही था बल्कि जो व्यवहार उनके प्रति उनके ही लोगों का दिखता  था उस से शकित होना  स्वाभाविक था. जिसकी झलक २०१४ के लोकसभा चुनावों और उसके परिणामो के बाद भी दिखी।

जिस प्रकार देश को प्रगति पथ पर अग्रसर करने के उनके प्रयास हैं निश्चित ही उन के प्रति जाग्रत  मेरी  आस्था और विस्वास को द्रढता प्रदान करती है. मुझे भी विश्वास है कि देश की दुर्गति करने वाले भले अब भी न चेतें पर देश के जागरूक नव युवको ने अबकी  बार अपने भाग्य का फैसला स्वयम किया है और विकास के रास्ते को चुना है।  लाख चाहने  पर भी वे ताकते अब जाति , धर्म , भाषा, क्षेत्र  इत्यादि के नाम पर बाँट न सकेंगी.

भारत की  पवित्र भूमि गुजरात  से भारत की राजनैतिक आजादी और उसके सर्वागींण विकास के सपने को सच करने वाले महात्मा गांधी और एक बार फिर सुराज की प्राप्ति और विकास के एजेंडे के साथ शेर की दहाड़ के साथ उतरे मोदी जी भारत माता को विश्व का नेत्रत्व प्रदान करने में  सक्षम होंगे।

स्वराज तो मिला पर नहीं मिला सुराज

शायद ये भारत का दूसरा गाँधी दिला सके

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

२.१०.२०१४

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