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” सुनहरे दिन ”

kushwaha
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” सुनहरे दिन ”

गतांक से आगे -५
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नट – सुनो सुनो सुनो सुनो एक बड़ी खबर सुनो
टूटा किसी का साज सुनो , मिला किसी को राज सुनो

नटी- एक राजा को बड़ा ‘ हार’ मिला
किसी को तीन टुकड़ों में बिहार मिला

नट -बुलेट ट्रेन को लगा करारा धक्का
तिकडी जा पहुँची खाने को मक्का

नटी -दूँगा घर में रोटी घर में दूँगा काम
बढ़िया भोजन और बढ़िया दाम

नट- परिवार संग बैठ हर पर्व मनाना
गाँव देश तक उजियारा फैलाना

नटी- शिक्षा के तुम रहे सदैव धनी
क्या समझाऊं तुम खुद ही गुनी

नट – खुश न निवासी ना ही उन्हें आराम
क्या करें पसंद चाकरी बन कर गुलाम

नटी – पसंद न आयी उनको यह बात
कर बैठे सब मिल अपने से घात

नट – जाति जरूरी धर्म जरूरी या जरूरी है विकास
मकड जाल में उलझे भैया कर बैठे सत्यानास ?

नटी – खुद जाएँ हर दिन अमरीका
ये घर रहें बोलो कौन तरीका

नट- आदत आदत होती ये तुम सब जानो
कटोरा संग हो करछुल कढाई क्यों मानो

नटी – हरी – हरी फिर हरियाली देखो
चारा खाया अब उसकी जुगाली देखो

नट- सूरज निकलेगा घटा ले काली
तपता सूरज खेतों में सुनहरी बाली

नटी – होगा जन – जन का खूब विकास
जागी है देश में एक नयी आस समझो नरेंदर

नट- रथ रोक कर महारथी बने जों बुलेट ट्रेन के ड्राईवर अब वो
रुक रुक चलेगी क्या सरकार लाल झंडी लिए हैं तीन सवार

नटी -मोदी जी को कम न मानो , राज नीति का पंडित जानो
उलझाए सबही आमो खास , कौन उडाएगा इनका उपहास –चलें पोर बन्दर

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

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