kushwaha
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दोहे/* प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //
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बाला फिर शिकार हुई लूटी उसकी लाज
अपंगता बैरन भई सोया पड़ा समाज
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अंशदायी मात है पिता नही सौगात
काट तन जो पोस रही पुरुष लगावत घात
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नारी निंदा मत करो नारी रस की खान
जन्मदात्री रही सदा राखो इसका मान
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नारी पुरुष समान हैं भेद न करियो कोय
मिलकर जग रचना रचें मूढ़ मती मत होय
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नारी संगत है भली लें ममता की छाँव
नाना रूप धरे जगत हरि के दाबत पाँव
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पुत्री जबहि गृह जनमती श्री वृद्धी हो तात
रिश्ता निभाय वो कई सबसे सुन्दर मात
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पुत्री जनम है शुभ सदा संशय करो न भाय
दीक्षित कर भेजो उसे पीहर सुखी बनाय
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२५-०७-२०१४
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
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