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पानी/* कुशवाहा //

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kushwaha
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पानी
——–
बरसे धरती पर जब पानी
तभी है संभव कृषी – किसानी
पानी  इतना  है  अनमोल
बिन इसके जीवन  बेमानी
पानी  व्यर्थ  न  बहने  पाए
यह  बात सबकी समझ  में आए
गाँव का पानी रहे गाँव  में
खेत का पानी खेत में जाए
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

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