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मैं एक पेड़ हूँ/* कुशवाहा //

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kushwaha
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तनहा खड़ा

एक पेड़ हूँ मैं

बरसों पहले

नन्हा सा प्यारा बच्चा

पास के जंगल से

मोहित हो मेरे रूप पर

अपनी नन्ही बाँहों में भर

घर मुझे ले आया था

कोमल हाथों से अपने

आंगन में मुझे बसाया था

सोते जागते उठते बैठते

पास मेरे मंडराता था

सुबह शाम पानी देकर

मन ही मन इठलाता था

बच्चे खेलें साथ मिलकर

उनसे मुझे बचाता था

आँगन उसका इतना बड़ा था

जैसे होता माँ का दिल

रह न जाऊं कहीं  अकेला

नित नए पेड़ लगाता था

साथ -साथ हम बड़े हुए

कई साथी मुझको दिए

अपना घर परिवार बढाया

जीवन के हर सुख-दुःख में

अपना साझीदार बनाया

कल चक्र से सब बंधे हुए

समय बीता हम जुदा हुए

वो आज नहीं है

मैं

अकेले में खड़ा

एक पेड़ हूँ मैं

प्रदीप  कुमार सिंह कुशवाहा

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