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लेखक हूँ ?
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घीसू मोची — अस्तबल चाचा , अब फुट पाथ पर कवि सम्मेलन। पुरस्कार काहे लौटा दिया ? बड़े -बड़े ठंडे गरम कमरा और साथी – बाराती भी गायब। पीछे से रोज – रोज की लत्त तेरी की , धत्त तेरी की सों अलग से हो रही है ।
अस्तबल चाचा – सुन घीसू , इतने वर्षों से तू भी जूते बनाता है , पालिश करता है , टांका न टूटने की गारंटी , सोल न फटने के वायदे से बेचता है जूता। लोग आते हैं तेरे झाँसे में कि नही। ये जानते हुए भी ये अधूरा सत्य है।
घीसू मोची- हाँ मालिक। ये तों आप ठीक ही कहते हैं। बरस -दर – बरस इसी रोजगार से घर -बार पल रहा है.
अस्तबल चाचा – क्या बताएं , घीसू भाई , रजिया गुंडों में फंस गयी। ये हंसिया हैं न –गुड भरा हंसिया , क्या करें? जों होना था हो गया। हमें क्या पता था , कौए के अन्डो के आमलेट के सेवन से ये हश्र होगा।
घीसू मोची- चाचा , आखिर माजरा क्या है।
अस्तबल चाचा -मति मारी गयी थी। साथी यार दोस्त बोले , फिजाँ बदल रही है। कितना तेल लगाया फिर भी लाठी टूट गयी। दुनिया भर की गर्द आपके चेहरे और कपड़ों की शोभा बने है, कुछ ज्यादा हांसिल भी न हुआ। आपके साथी न जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गए। १०-१२ साल का इन्तजार है बेकार , जरा सा कुन मुनाइये , यहाँ न मिले बढ़िया पद तों अपनी सरकार बना उसमें पाइये। देंगे हम भी साथ बस आगे -आगे आप पीछे से हमें पाइये।
घीसू मोची-चाचा बुरा ना मानेयो छोटे मुहँ बड़ी बात , नाराज न हो तों पूंछू?
अस्तबल चाचा – जरुर , अब तुम भी अपनी इच्छा पूरी कर लो , एक लात और सही।
घीसू मोची- माफ़ करना चाचा हम पहले ही माफी माँग चुके थे , ज्यादा तकलीफ हो तों रहने दो ?
अस्तबल चाचा- क्रांति जब – जब हुई है तों लेखकों का उसमें महत्वपूर्ण योगदान रहा है , जनता वही जानती है जों उसे बताया जाय , फिर बार – बार किसी चीज कों दोहराया जय तों वो सत्य स्वरूप हो जाती है , भले ही गलत और आधार हीन ही क्यों न हो। तमाम राजनैतिक , प्रशासनिक पद पाने की महत्वकांक्षा ने हमें और साथियों कों इस अधोगति कों पहुंचाया है। झुनझुना भी नही मिला। अब शैक्षिक योग्यता उतनी महत्वपूर्ण नही रही जितनी पारिवारिक पृष्ठ भूमि।
घीसू मोची– अगला कदम ? अब किसकी बारी है ?
अस्तबल चाचा–लेखक हूँ भाग्य का सिकन्दर। आओ , तुम भी साथ चलो पोरबंदर ।
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
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