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कविता / प्रेम
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– प्रदीप कुमार पालीवाल ( 09761453660 )
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1.
खाप…
ऑनर किलिंग…लव जिहाद…
इन के आधार पर
आपका कहना –
मुश्किल में है प्रेम !
लेकिन
सविनय
मेरा मानना है –
सिर्फ़ वासनाएँ प्रेम नहीं…
और प्रेम
मुश्किल में नहीं है…
वरन –
‘प्रेम’
मुश्किल से होता है…!
2.
होंगे कन्हैया के कुछ पूर्वाग्रह…
उसका आक्रोश…
आज़ादी की उसकी माँग…
चलो यह भी मान लें
कि एक षड्यंत्र की तरह
दक्षिणपंथ के मुखर विरोध में
उसकी की जा रही है स्थापना !
लेकिन दोस्त !
आज कन्हैया कुमार एक विचार है
संवाद है…
और संवाद ख़िलाफ़ भी जाएँ
तो उनका स्वागत है…
विरोधी संवाद को मान देना
प्रेम का सर्वश्रेष्ठ चित्र है…!
3…
उस दिन मैं था बीमार
और आप ले आए थे दवा
चुपचाप
इक तरफ़ा संवाद की तरह…
…और आज
आप ही लगे हैं
बाँटने में
मेरी बदनामी के पर्चे
इक तरफ़ा संवाद की ही तरह..
.
आज मैं ख़ामोश हूँ
मैं प्रतिवाद भी नहीं करता !
…वो दवा वाला इक तरफ़ा संवाद
प्रेम बनकर
मेरी शिराओं में नृत्य करता है…
4.
ईंटें
यही कोई दो हज़ार…
घर-भीतर पहुंचाने का ठेका लिया है उसने…
बीच-बीच में
दम मारने के बहाने
सुट्टा लगा लेता है मज़दूर…
मैं धूम्रपान विरोधी हूँ
बावज़ूद इसके
कहने की इच्छा है –
सुट्टा
श्रमिक के सौंदर्य को
अलौकिक बनाता है…
‘प्रेम’ के क़ाबिल भी… !
5 .
देखा…मिल लिए
सुना…मिल लिए
पढ़ा…मिल लिए !
कल्पनाओं में ही सही
हम मिले तो थे…
हमने ही बदली थी
आलिंगन की परिभाषा,,,
कल्पनाओं में ही सही
पूरी पवित्रता के साथ…!
बेशक़ !
हमारी इस कल्पना में
आनुपातिक दृष्टि से
वासना की
नमक बराबर
मिलावट भी थी.
लेकिन
प्रेम के रिश्तों का
देर तक कल्पनाओं में बने रहना
शुभ नहीं.
ये रिश्ते
वास्तविक रिश्तों को
प्रभावित करते हैं बेतरह !
कल्पनाओं में घुमड़ रहे
प्रेम के रिश्ते
समय रहते साकार हों
ऐसी शुभाकांक्षा !
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