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कुछ शब्द चित्र “नोटबंदी” के…

मेरा पक्ष...
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कुछ शब्द चित्र “नोटबंदी” के…
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प्रधानमंत्री ‘ट्विटर’ के माध्यम से देश को बता रहे हैं कि नोटबंदी यज्ञ है.
संसद के होते हुए भी विपक्ष अपनी आगामी रणनीति के लिए पीएम के ‘फेसबुक’ एकाउण्ट को खँगाल रही है.
काहे की संसदीय गरिमा !
जय हो सोशल मीडिया !!
– Ishuईशू

अनुमान से कम ‘कालेधन’ की बातें हो रही हैं. लेकिन #नोटबंदी ने अनुमान से ज़्यादा ‘कालेमन’ को निकाल कर धर दिया है.
– #Ishuईशू

…बात तब की है. हमने पुस्तकों से दोस्ती शुरू ही की थी.लेकिन इतनी समझ आ चुकी थी कि सरकार जो टैक्स हमसे लेती है वह दरअसल प्लानिंग के साथ भविष्य में हमें ही मय सूद के मिलने वाली सुविधा है.और यह भी कि टैक्स बचाना,चोरी करना अपने ही पैरों में कुल्हाड़ी क्या ‘बक़ा’ मारना है.तब ‘नोटबंदी’ जैसा कॉन्सेप्ट दूर-दूर तक नहीं था.हाँ ! जाली मुद्रा वह भी ‘चवन्नी’ के रूप में ज़रूर दिमाग़ में सिक्के की तरह उछलती रहती थी.
ऐसे में एक किताब के बारे में सुना…श्री रामनिवास लखोटिया जी द्वारा लिखी “इन्कम टैक्स कैसे बचाएँ” तब मैं शायद हँसा था…
यह ठीक है कि ज़िंदगी ने आज तक मुझे ‘इन्कम टैक्स पेयर’ का गौरव प्रदान नहीं किया लेकिन विश्वास मानिए मुझे व्यक्तिगत तौर पर किसी समाचार पत्र का “…बने सबसे ज़्यादा इन्कम टैक्स देने वाले” शीर्षक पसंद है.
मुझे लगता है उपरोक्त पुस्तक के साथ ही ‘टैक्स चोर’ के रूप में हमने बाक़ायदा स्वयं को दक्ष करना शुरू कर दिया था. अब हम इसमें पारंगत हैं…बेचारे मोदी जी !
– #Ishuईशू

आप भी हमारे कमीनेपन की दाद दें यारों
रेड नोटबंदी की हम शिद्दत से मार रहे हैं !
– #Ishuईशू

कालिख कालेमन की चेहरे पे पुत गयी
आईना नोटबंदी का देख लिया होगा !
– #Ishuईशू

इत्ती गणित,उत्ते अनुमान ! गली-गली नोट चर्चा !
शुभ सूचना ! अर्थशात्र का अगला नोबेल भारत से…!
– ईशूIshu

पढ़कर अच्छा लगा…
दैनिक जागरण (6-12-16) में ‘अंबेडकर का अर्थशास्त्र’ (अभिनव प्रकाश)पढ़ रहा था…
1923 में प्रकाशित ‘रुपये की समस्या-उद्भव और समाधान’ में अंबेडकर लिखते हैं…सरकार की नोट छापने की शक्ति सीमित होनी चाहिए…
1925 में प्रकाशित ‘ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त व्यवस्था का विकास’ में अंबेडकर ने 1792 से आंकड़ों का संकलन और विश्लेषण कर लिखा था कि किस प्रकार तत्कालीन टैक्स प्रणाली ग़रीब और किसानों पर क्रूर तरीके से प्रभाव डालती थी.
उपरोक्त को रेखांकित इसलिए किया ताकि मूर्ति उपासक माया देवी,नोटबंदी से उपजी अस्थाई अव्यवस्था को ढ़ाल बनाकर छद्म अमर्त्य सेन बने विपक्षी चिरकुट जाने कि नोटबंदी किस तरह आज की ज़रूरत थी. यह वोट खींचने की नहीं काला नोट ‘ख़ारिज’ करने की क्रांति है.
जिस तरह कतिपय बैंक अधिकारियों की काला-सफ़ेद करने, स्वर्णकारों की संलिप्तताओं,जन-धन खातों के दुरपयोग की सूचनाएँ हैं…यह बताने के लिए काफ़ी है कि कालेधन ने हमारा कालामन ही नहीं कर दिया था वरन ‘चोरी-सीना जोरी’ के मुहावरे को भी चरितार्थ कर दिया था.
ख़ैर…लड़ाई अभी लम्बी है…!
फिलहाल दिल्ली विवि में अo प्रोफ़ेसर अभिनव जी को एक अच्छे,सामयिक लेख हेतु शुभ !
– #Ishuईशू

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