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भगवान न सही संविधान के लिए…

मेरा पक्ष...
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10-12-16
भगवान न सही संविधान के लिए…
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– प्रदीप कुमार पालीवाल
( 09761453660 )
लोकतंत्र में बहुमत का राज होता है.अल्पमत में रह कर विपक्ष अपना विरोध धर्म निभाता है.हमारे संघीय ( RSS नहीं… ) चरित्र के लिए यही मुफ़ीद है. लेकिन हो तो कुछ और ही रहा है…
सदन में बहस होनी चाहिए. धरना प्रदर्शन हो रहे हैं. सड़क पर पुतले फूँककर धरने होने चाहिए…निरर्थक बहसें हो रही हैं.
इसे ‘उलटवांसी’ कविता भी नहीं कह सकते. क्यूंकि जहाँ कविता होती है वहां ‘लय’ के वर्तुल हिलोरते हैं. हमारी संसद में तो पूर्वाग्रही ‘पत्थरबाज़ी’ हो रही है जो रह-रहकर आत्मघाती ‘भूकंप’ की स्थिति पैदा कर रही है.
क़ीमती होती है सदन की कार्यवाही. हम भारतीय श्रम से अर्जित पाई-पाई इसमें ख़र्चते हैं.इसमें पड़ने,डालने वाली बाधा #आज़ादी को दी गयी ग़ाली है ! शहीदों का अपमान है !
‘नोटबंदी’ के मुद्दे पर विगत 17 दिनों से संसद-माँ का चीरहरण किया जा रहा है.राष्ट्रपति गुहार लगा रहे हैं कि भगवान के लिए अपना काम करें सांसद. लेकिन विपक्षी सांसद लगातार संसद को साँसतघर बनाने पर तुले हैं.
केंद्र में दक्षिणपंथी सरकार है. ‘भगवान’ को ‘राष्ट्रवाद’ के बहाने आरएसएस का माननेवाले ‘भगवान के लिए’ पर आपत्ति प्रकट कर सकते हैं. तो उनके लिए हम इतना कह सकते हैं कि भगवान न सही ‘संविधान के लिए ही सही’ अब तो बड़े बन जाइए !
बहस विपक्ष का हथियार है. और संसद इसे ‘भाँजने’ का युद्धस्थल ! सांसदों…पार्थों धर्मयुद्ध करो ! विपक्ष का धर्म-भ्रष्ट करने पर क्यूँ तुले हो ?
शायद यह पहली बार है जब किसी ने ‘बहुमत’ के दर्द को शब्द दिए.’अल्पमत’ को उसकी सीमाऐं बताईं. वरना जिसे देखो वही ‘बहुमत’ को लतियाने में जुटा है. ‘लाइन’ की मौतों का वितण्डा खड़ा करके ‘नोटबंदी’ को ‘फ़क़ीर’ का ‘कोट’ बताकर हंसी का पात्र बनाया जा रहा है. सरकार की।’इच्छाशक्ति’… समस्या पर चोट करने की उसकी ‘ऐतिहासिकता’ को धता बताकर सिर्फ़ रौंदे हुए ‘टमाटर’ के विजुअल खड़े किए जा रहे हैं. ‘कैशलेस’ के भ्रष्टाचार रोधी आधुनिक कॉन्सेप्ट को ‘फेंकू’ की कवायद बताया जा रहा है.’दो-दो लाख’ की रहम दिली दिखाकर चुनावी कार्पेट बिछाया जा रहा है.
अरे ! ग़रीब के अरमानों पर पलीता लगाने वालों यह समय राजनीति का नहीं ‘कालेधन’ पर वार का है. आतंक की पौध तैयार करनेवाला कालाधन कम होगा तो विकास की योजनाओं के लिए ज़्यादा धन उपलब्ध होगा. ज़्यादा शौचालय बनेंगे. इन शौचालयों से फ़क़ीर की नहीं हमारी आपकी बहू-बेटी रूपी ‘इज्जत’ ढँकेगी. यदि आपको ट्रेन की पटरियों के किनारे खुले में शौच करता ‘डार्क भारत’ पसंद है और यदि आपको लगता है कि ‘भगवान जो करेगा…सही करेगा’ तो बनाए रखो वही यथास्थिति…तलाक…तलाक…तलाक वाली मध्युगीन सोच !
वामपंथियों आपको क्या हुआ ?
क्या आप भी ‘मसाज’ में लगे कथित समाजवादियों और ‘गणेश’ परिक्रमा में विश्वास रखने वाले कांग्रेसियों की तरह के ‘लाल सलाम’ में भटक गए ?
‘नोटबंदी’ दक्षिणपंथ का नहीं सर्वहारा की आवाज़ ‘वामपंथ’ का मुद्दा थी. लेकिन संघर्ष के स्वर को गंवाकर आप भी ‘ममता-मयी’ हो गए ? कहाँ मैं भी ‘चे ग्वेरा’ के वामपंथ में ‘कन्हैयावादी’ हो चले वामपंथ को आइना दिखाने में समय नष्ट कर रहा हूँ !
आमीन !

***aarnaa

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