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शक्की मन से…

मेरा पक्ष...
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शक्की मन से…
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– प्रदीप कुमार पालीवाल ( 09761453660 )
नोटबंदी के बाद मोदी जी के चेहरे के साथ ‘पेटीएम’ कुलांचे भर रहा है.जीरो से हीरो बनी इस Paytm वॉलेट one 97 कम्युनिकेशन्स लिमिटेड कंo की बैलेंस सीट सरकार को चैक करते रहना होगा.
क्या है कि ठीक है लोग आपके चेहरे को आपसे पूछे बगैर यूज़ कर लें तो आपको उनसे अपने चेहरे की ‘नाक’ को कटने न देने का बॉण्ड न सही कम-से-कम ‘कौल’ तो भरवा लेना ही चाहिए.
हमने अपना यह शक अपने एक मित्र से जाहिर किया तो प्रश्न उभरा-
“प्रदीप ! हैव यू एनी प्रॉब्लम ? लूप्होल ?”
या !
क्या है…जैसे ही कोई ‘करोड़पति’ बनाने लगता है. वैसे ही मेरा शक्की मन ‘सेवा प्रदाता’ को शक के दायरे में लेने लगता है.
‘बंपर प्राइज़’ और ‘आकर्षक इनाम’ का झांसा शौच के लिए अभी भी प्रशिक्षण पाता यह देश झेलता आया है. वो जो बड़ा वाला ‘करोड़पति’ था न ! ( जो आजकल एक एड में मेरी एक फेसबुक मित्र ‘मिन्की जी’ के शब्दों में ‘माँ’ के हाथों की स्वाद वाली ख़ुशबू की बेढब तुलना मसाले की ‘लकड़ी’ से करता फिर रहा है. ) हम गरीबों की गाढ़ी कमाई ‘एसएमएस’ करा-करा के पानी में मिला चुका है.
अख़बारों में करोड़ों के विज्ञापन लगातार दे-देकर पेटीएम हमें करोड़पति ही नहीं बना रहा उसकी योजना हमें ‘शर्तें’ लागू के साथ,लालच के एवज में ‘काम’ पर लगा देने की भी है.इसके लिए उसने बाक़ायदे भारत सरकार की पंच लाइन ‘सर्व शिक्षा अभियान’ ( Sarva Shiksha Abhiyān ) को चुना है.
कह नहीं सकता यह कॉपी राइट का मामला है या नहीं ?
‘इंडियन’ … ‘अखिल भारतीय’ के शीर्षकों से शुरू होने वाली योजनाओं/कंपनियों का छद्म हम बख़ूबी जानते हैं.
देश डिजिटल क्रांति का हिस्सा बने और पेटीएम इसमें अपना सार्थक रॉल निभाए,कौन नहीं चाहता ? लेकिन उत्साह अतिरेक में ‘खजूर’ पे अटकना भी ठीक नहीं.
व्यंग्य नहीं बक रहा मैं. और न ही सुना रहा हूँ आपको लंतरानियां !
सच्चाई बता रहा हूँ !
३० वर्ष गए हैं. ख़बरों / विज्ञापनों को सूँघते-सूंघते. और अच्छी तरह से जाना है कि कोई यूँ ही नहीं बनाता करोड़पति ?
खाल खींच लेता है पूंजीवाद. हम चाहते हैं कि पेटीएम जैसे नोटबंदी की हौच-पौच में ‘वारे-न्यारे’ न करे . विजन मोदी में पलीता न लगाए . और न ही नोटबंदी के बाद उभरे नए देशद्रोहियों यथा…हवाली,बैंकर,एक्सिस कर्मियों,ब्लैक स्वर्णकारों…भू माफ़ियाओं की फ़ेहरिश्त में कोई अपना नाम ही लिखवाए ?
देश…याद रहे…!
नोटबंदी हाथ आया ऐसा अवसर है जिसमें ‘सॉरी’ बोलते हुए न केवल हम अपना कालाधन ‘सफ़ेद’ कर सकते हैं ? वरन कालामन भी ‘स्वच्छ’ कर सकते हैं. मुझे नहीं लगता ‘अन्ना’ आंदोलन की मफलरी हठधर्मिता के कारण हुई दुर्भाग्यपूर्ण भ्रूणहत्या के बाद नोटबंदी की विफलता आज़ाद भारत में किसी को भी भ्रष्टाचार विरूद्ध कोई बड़ा आंदोलन चलाने के लिए ‘बूस्ट’ करेगा.
अरे यार ! मोदी न सही…मोदी की भावना की तो कद्र कर ही सकते होते हो ?
आमीन !!
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