मेरा पक्ष...
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सब कुछ ठीक तो है न…?
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हाँ सच है…
चाँद मिरी तनहाइयों का साथी रहा है…
सुख-दुःख का सहभागी भी…
सुना है
कल वह पृथ्वी के सबसे क़रीब था…
मौक़ा और साधन होता
तो ज़रूर पूछता…
साथी !
घर पे…
सब कुछ ठीक तो है न…?
कल्पनाएँ…
कल्पनाओं का मानवीयकरण…
कल्पनाओं का एकालाप…
कल्पनाओं में…
ख़ुद प्रश्न करना,
ख़ुद ही उसके उत्तर देना…
अपनी जगह ठीक है…
लेकिन दोस्तों…!
कभी-कभी
बहुत मन करता है…
कि
यथार्थ को दरकिनार कर
अपने से लगने वाले
काल्पनिक चरित्रों से
ख़ुद
व्यक्तिगत स्तर पर
बतियाऊं…!
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