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कोरोना आया-कोरोना आया,
लॉकडाउन तैयार है लाया।
सड़क की गलियां सून पड़ी हैं,
पैदल अब यह डगर बड़ी है।
मम्मी- पापा अलग परेशां,
खाया नहीं जा रहा पराठा।
बेटा हमारा दूर है,
मिलना अब तो नूर है।
संगी – साथी, रिश्ते – नाते,
हैंड – सेक अब कर नहीं पाते।
‘सेनेटाइजर’ का युग है आया,
साथ में संगी ‘मास्क’ है लाया।
दो गज दूरी, बढ़ी जरूरी,
जो चूके तो बंटी सब्जी – पूरी।
तीन महीना कईसेव काटा,
लॉकडाउन को बाय – बाय टाटा।
रेल की सीटी बोलने लगीं,
गाड़ियां भी अब डोलने लगीं।
मम्मी बोली अब तो आजा,
अपना पराठा तो तू खाजा।
बीच समुंदर नाव पा गया,
आखिर मैं भी गांव आ गया।
मम्मी बोली अब मत जाना,
चाहे सूखी रोटी खाना।
नाम कोरोना बड़ा भयंकर,
इससे बचाएं भोले – शंकर।
मास जुलाई बीत रहा है,
‘काढ़ा’ अब तक मीत रहा है।
वैक्सीन ट्रायल भी जारी,
अब तो करोना पक्का हारी।
इंतजार उस स्वर्णिम – पल का,
शुद्ध पवित्रम् गंगा जल का।
को-वैक्सीन हो नाम तुम्हारा,
हर्षित हो जाए भारत सारा।
मानवता की होगी जीत,
भारतवर्ष की यही है रीत।
……..प्रद्युम्न पाण्डेय
डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।
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