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नागपंचमी के शुभ अवसर पर

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नाग पंचमी का यह शुभ दिन,
रहे अधूरा उन नागों बिन,
बचपन में जिनके दिखने पर,
रोएं सभी खड़े हो जाते।
पांव जमीन परे – न – परे,
हम पल भर में थे फुर हो जाते।।

 

 

एक वो उनका काला रंग था,
दूजा उनका फन था।
तीजा उनकी फुफकारों में,
तनिक ना अपनापन था।।
कभी जो आएं अतिथि ये बनकर,
खड़े रहें ये ऐसे तनकर।
हमें लगा यमराज पधारे,
मृत्यु हमारी आज ये बनकर।।

 

 

देखो तो ऐसा लगता था,
मानो अब ये डस ही लेंगे।
मांग थी इनकी बस इतनी सी,
अमिय दुग्ध रूपी रस लेंगे।।
अनुभवजन्य विचार बताता,
रक्त हमारा इन्हें नही भाता।
यदि इनके जीवन के पथ का,
हक इनको भी है मिल पाता।।

 

 

 

यदि हम उनको तनिक न छेड़ें,
हमको क्यों नुकसान करावें।
उनका भी तो हक है जीना,
अपने हक का दूध वे पावें।।
शायद आज इसी कारणवश,
याद उन्हें हम करते हैं।
इस दिन की अनुपम बेला में,
आजाद उन्हें हम करते हैं।।
जय भोले शंकर ,
जय भोले नाथ।
रहे मेरे सिर पर,
सदा आप का हाथ।।

 

…… प्रद्युम्न पाण्डेय

 

 

 

डिस्क्लेमर : उपरोक्त विचारों के लिए लेखक स्वयं उत्तरदायी हैं। जागरण जंक्शन किसी भी दावे या आंकड़े की पुष्टि नहीं करता है।

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