प्रज्ञेश कुमार ”शांत“
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पता नही कहाँ पर, क्या टूट गया है?
थोड़ा ठहरो ध्यान से देखो, कौन-कौन छूट गया है?
रेगिस्ताँ तो है नही यहाँ फिर, कौनसा ऊँट गया है?
हर प्यासे के कंठ में पानी का, कितना घूँट गया है?
खामोशी के फरिस्तों की छाँव में अब, कौन लुट गया है?
पता करो आज़ाद मनुष्यों से आज, कौन रूठ गया है?
-✍️ प्रज्ञेश कुमार “शांत”
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