प्रज्ञेश कुमार ”शांत“
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नवजात का चहकना,
फूलों का महकना,
पलकों का फड़कना,
दिलों का धड़कना।
लताओं का लटकना,
शीशे का चटकना,
साँसों का अटकना,
पशुओं का भटकना।
आसमाँ की ऊँचाई,
सागर की गहराई,
रक्त की ललाई,
स्वयं की परछाईं।
कायनात की ताक़त,
मासूम की सूरत,
ख़्वाबों की हक़ीक़त,
हवाओं की फ़ितरत।
सूर्य का तापमान,
वक्त का अनुमान,
वृद्ध की थकान,
चेहरे की मुस्कान।
कोयले का कालापन,
आकाश का नीलापन,
बच्चों का बचपन,
अंततः जीवन का समापन।
प्रकृति की देन है।
✍️प्रज्ञेश कुमार “शांत”
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