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शहरी नक्सलवाद!

संवाद
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कुछ दिनों से एक शब्द बहुत बड़े चर्चा का विषय बना हुआ है वो है ‘शहरी नक्सली’ और अगर अंग्रेजी ज़बान में कहें तो ‘अर्बन नक्सलस’ । हम जहाँ भी देखें चाहे वो न्यूज़ चैनल की अनिर्णायक बहस हो या अख़बारों के संपादकीय सभी जगह यह शब्द छाया हुआ है । और हाल ही के कुछ घटनाक्रमों से इस शब्द को मानो जीवनदायिनी हवा मिल गयी हो ।

सबसे पहले हमें ये जानना ज़रूरी होगा की इस शब्द की शुरुआत कैसे हुई ? तो इसके लिए हमें इतिहास का पन्ना पलटना पड़ेगा । ज्यादा पीछे नही बस कुछ साल पहले चलना होगा । नवंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट में “किशोर समरीते बनाम भारत सरकार” नामक मुकदमें के दौरान कांग्रेसी सरकार ने एक शपथ पत्र(एफीडेविट) में कहा था की ये शहरी नक्सली ( अर्बन नक्सलस ) पीपुल्स लिबरेशन गुर्रिल्ला आर्मी जो सी पी आई (माओवादी) से संबंधीत एक सशस्त्र संगठन  है उस से भी ज्यादा खतरनाक है ।

इसी मुकदमें के बाद अर्बन नक्सल शब्द ईजाद हुआ था । अब चलते हैं हाल के घटनाक्रम में 31 दिसम्बर 2017 को भीमा – कोरेगाव युद्ध विजय की 200वीं सालगिरह मनाने के लिए एक “यलगार परिषद्” का आयोजन हुआ जिसमे गुजरात से नवनिर्वाचित विधायक जिग्नेश मेवाणी , जे एन यु के छात्र नेता उमर खालिद और अन्य लोगों का जोरदार भाषण हुआ। अब यहाँ पर गौर करने की बात है की यह कार्यक्रम दलित केंद्रित था लेकिन उस मंच पे वामपंथी विचारधारा के उम्र खालिद भी मौजूद थे जो ना ही दलित नेता हैं और ना ही उनका इस कार्यक्रम से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध था । इसी दौरान दूसरे पक्ष के लोगों और वहां पर उपस्थित लोगों के बीच वाद विवाद हुआ और मामला दंगा तक पहुँच गया । इसमें मुकदमा भी हुआ गिरफ्तारियां भी हुई । इसी दौरान पुलिस ने रोना विल्सन नामक एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया जिसके लैपटॉप से एक आपत्तिजनक पत्र बरामद हुआ जिसमे प्रधानमंत्री मोदी को जान से मारने की शज़िस का खुलासा हुआ ।

उसके कुछ दिनों बाद माओवादी विचारक और कवि वरवर राव, अरुण फरेरा, सुधा मूर्ति और कुछ लोगों को इस साज़िश में शामिल होने के आरोप के आधार पे गिरफ्तार किया गया । उसके बाद देश के कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी कहने लगे की देश में आपातकाल जैसे हालात हैं । लेकिन ये गौर करने वाली बात है की गिरफ्तार लोगों में से 3 लोग पहले भी आर्म्स एक्ट और अन्य आरोपों में जेल में बंद रह चुके हैं और इस गिरफ्तारी का राजनीतिक पहलु देखा जाए, तो कांग्रेस का मत है की इनलोगों को मोदी का विरोध करने के लिए गिरफ्तार किया गया है लेकिन कांग्रेस इस विरोध के दौरान ये भूल गयी की ये सभी आरोपी पहले भी उसके सरकार में गिरफ्तार रह चुके हैं। लेकिन कांग्रेस अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इन गिरफ्तारियों का विरोध कर रही है ।

हां, ये जरूर है की लोकतंत्र में विमर्श और विरोध का स्थान है लेकिन विरोध विचारधारा का होना चाहिए न की किसी व्यक्ति की जान ले कर हम उसका विरोध करें। कांग्रेस की हालात अब एक चीयरगर्ल की तरह हो  गयी है की मुद्दा कोई भी हो उनको बस विरोध करना है लेकिन हमें सोचना होगा की क्या नक्सलवाद हमारे लिए सही है या गलत ।

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