Digital कलम
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“समय की उड़ान”
बह रहा हूँ समय की उड़ान पर, एक अनजान राही की तरह,
आगे बढ़ा हूँ जीवन के सफ़र पर, एक वीर सिपाही की तरह,
कुछ मिलता है कुछ टूटता है, एक आम संसारी की तरह,
खुशियाँ मांगता हूँ इस जग से, एक अदद दोस्त की तरह,
आसुओं के दर्पण में देखता हूँ अहम्, एक अज्ञानी के तरह,
बह रहा हूँ समय की उड़ान पर, एक अनजान राही की तरह|
कुछ यादें हैं इस मानस पटल पर, एक चल चित्र की तरह,
कुछ असफलतायें हैं इस जीवन में, अग्नि तपन की तरह,
बढ़ रहा हूँ मैं सतत अनवरत, एक जगत नायक की तरह,
अनन्त ब्रहमांड में चमक रहा हूँ, एक ध्रुव तारे की तरह,
बह रहा हूँ समय की उड़ान पर, एक अनजान राही की तरह|
(भवदीय – प्रशांत सिंह)
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