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पैसा , आदमी और जिंदगी

जज्बात मन के
जज्बात मन के
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पैसे की दौड़ में हर रिश्ता भूला दिया
इस पैसे ने इंसान को जाने क्या बना दिया

छोड़ के घर बार , माँ का प्यार भूल के
एक अजनबी शहर को अपना बना लिया

माँ-बाप के प्यार को बचपन तरसता है
बुढ़ापे की आँखों से सावन बरसता है

इंसान है के सब देख कर भी कुछ कर नही सकता
पैसे के बिना जिंदगी बसर कर नही सकता

बस यही सोच के मन ये मुस्कराता है
कभी तो होंगे हम भी फुरसत में ये आस जगाता है

माँ के आँचल में सर रख के सुकून पाएंगे
पिता के कहकहो में हम भी मुस्काराएंगे

अपनों के साथ बैठ कर कुछ वक़्त बिताएंगे
कभी तो इस दौड़ से फुर्सत हम भी पाएंगे

यही सोचकर वक़्त गुजरता जाता है
अंततः इंसान बस दौड़ता रह जाता है

इंतज़ार में फुरसत के जीवन ना गुजर जाये
अपनों के साथ को आप तरस के ना रह जाये

अपनी व्यस्त जिंदगी कुछ पल चुराइए
दोस्तों ,
आप के अपनों को अपना बनाइये

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