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सात फेरे , सात जन्मों के साथ पर मोहर लगाते ऐसा मैंने सूना था और मैंने अपने घर में , आसपास में यही देखा भी था |माँ-पापा , भैया-भाभी, चाचा-चाची और ऐसे जाने कितनो रिश्तो को मैने बड़े ही करीब से देखा है , मुझे यही लगता था कि शादी के सात फेरों के बाद कोई अलग नही होता ना ही अलग रह सकता है लेकिन आज जब मैंने समाज को नजदीक से देखना शुरू किया तो मुझे एक दूसरा ही रूप देखने को मिला जिसने मेरी सोच बदली तो नही मगर मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि शादी जैसा रिश्ता भी किसी को साथ रहने पर आज के दौर में मजबूर नही कर सकता ,जो साथ रहना चाहे वो रहते है जो ना चाहे एक नोटिस देकर इस रिश्ते से आजाद हो जाते है , जैसे शादी के वचनों का कोई औचित्य ही नही, औचित्य है तो सिर्फ अपनी ख़ुशी अपनी संतुष्टि का | ठीक भी है ..मजबूरी में किसी के साथ क्यों रहना |
मेरे मन में कई दिनों तक ये बातें चलती रही फिर मैं आस-पास के लगभग कई घरों में लोगों से मिली और अपने जानने वालो में भी बहुत से लोगो से बात की , मैंने पाया की हर चौथे घर में एक रिश्ता टूटने की कगार पर है या कही पर टूटना शुरू हुआ है तो कही टूट चूका है , फिर मैंने उसका असर उस family पर देखना शुरू किया , सबकी लाइफ अस्त-व्यस्त ,कही बड़ों के मन का बोझ बढ़ गया है तो कही बच्चों का बचपन कही खो गया है| पति और पत्नी पर इस बात का असर होता भी है तो उन दोनों के बीच के तनाव का असर उससे कही ज्यादा है वो चाहकर भी साथ नही रहना चाहते ,उन्हें अलग होना ही सही लगता है |
दोस्तों , घर टूटने पर असर तो हर किसी पर होता है लेकिन जो असर मासूम बच्चों पर होता है वो असहनीय होता है ऐसे में मन चाहता है कि काश वो टूटे रिश्ते जुड़ जाते| ऐसे विचारों के कारण मेरे मन में अनगिनत प्रश्नों को जन्म दिया, जैसे, वो कौन सी वजह या परिस्थितीया है जो सात जन्मों के रिश्तो को भी तोड़ देती है , आपस के प्यार के रंग को इतना धूमिल कर देता है कि उनपर नफरत , नासमझी , लालच और नाजाने कई और तरह के रंग चढ़ जाते है ,क्यों इंसान अपनी संतुष्टि के आगे दुसरो को जिनकी जिंदगी पर उनका असर होता है उन्हें वो असंतुष्ट असहाय छोड़ देते है …..पता नही मै इस विषय में किसीकी मदद कर पाऊं या नही लेकिन मन ने ये सोच लिया है कि जो चीज मन को दर्द से भर दे उसे दुसरो के मन से दूर करने की एक कोशिश जरुर करनी चाहिए ….अगर आपका कोई सुझाव हो तो जरुर बताये …
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