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ऐ माँ

जज्बात मन के
जज्बात मन के
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ऐ माँ तुझसे ना मैंने कभी,

अपना प्रेम जताया

फिर भी अपने हर हिस्से में,
मैंने तुझको ही पाया

कल जब मैं तेरी गुड़िया थी
पलकों पे बिठा कर रखा
आज भी अपनी खुशियों पर तूने,
मेरा नाम लिखा
अपनी खुशियों में हर पल मैने
तुझको हँसता पाया
ऐ माँ , बस अपना प्रेम न अबतक
मैंने तुझसे कभी जताया

आज मैं बैठी दूर यहाँ
खुद में मशगूल हुई हूँ
तुझको लगे ये शायद मैं
तुझको भूल गई हूँ
लेकिन, जब भी तु याद है आई
इन आँखों में अश्क है आया
मैं इक पल तुझसे दूर नही माँ,
मैं तेरा हूँ सरमाया

माँ जग की ये रीत बुरी
जो मुझे पराया कहती हैं
ऐ माँ तू आज भी मेरे,
रोम रोम में रहती है
मैं कैसे चुकाऊ क़र्ज़ तेरा,
तूने मुझको ऋणी बनाया
ना देखे वो बच्चे जिसने
माँ का क़र्ज़ चुकाया

“तुझसे दूरी का दर्द मैं,
कैसे तुझे बताऊ
तू मेरी है फिर भी ,
मैं तेरी ना कहलाऊ
इस जनम हूँ तेरी बेटी मैं,
फिर,बेटी बनकर ही आऊ
जब जब जनम मिले ऐ माँ..
मैं तेरी ही कहलाऊ ,,

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