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कौन हूँ मैं …

जज्बात मन के
जज्बात मन के
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दिल ने पूछा कौन हूँ मै ,मेरी क्या पहचान है
अपने मूल्य से इस दुनिया में औरत क्यों अनजान है

जिस तरफ भी देखा ,एक खौफ सा दीखता है
आज भी पुरुष के आगे क्यों …औरत का मान सस्ता है

कही माँ , कही बहन बनी ,कभी बेटी बन जिन्हे संभाला है
आज उसी ने कदम-कदम पे हर रिश्ते को कुचल डाला है

कब तक ये आग जलेगी कब तक औरत दर्द सहेगी .
इक दिन वो भी आएगा जब हर औरत यही कहेगी

” सम्मान हमे न दोगे अगर सम्मान कहा से पाओगे
औरत न होगी गर धरती पर किसके भाई बाप कहलाओगे
आज अगर न औरत कि अस्मत की रक्षा ना कि तुमने
कल कन्यादान करने क लिए कन्या कहा से लाओगे ,,

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