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सम्राट बृहद्रथ की भव्य विश्रामालय — के अंदर मयूर पंखो के डैनों से बने पंखो से सेविकाओं द्वारा हवा दी जा रही
प्रवेश करते ही सेवक बोला – महाराजाधिराज आर्य भारत भूमि जम्बूद्वीप चक्रवर्ती सम्राट बृहद्रथ की जय हो
अर्ध लेटे अवस्था में स्वर्ण पात्र में कोई विशेष पेय का पान करते सम्राट बृहद्रथ ने कहा- बोलो सेवक क्या सुचना है
सेवक बोला – प्रभु आप से विचार मंत्रणा हेतु महावीर सैन्य अधिपति श्री पुष्यमित्र शुंग एवं महा कंटक शोधन अधिकारी प्रमुख तथा गुप्तचर शाखा प्रमुख भी है
आह ऐसे क्या, कुछ अति विशेष कार्य है क्या? तीनो प्रमुख एक साथ, घोर आश्चर्य”
उचित है आज्ञा है ससम्मान इन प्रमुखों को मंत्रणा कछ में आमंत्रित किया जाये
किंतु सेवक रुको – सम्राट बृहद्रथ ने कहा
सेवक रुका बोला- प्रभु आज्ञा
सम्राट बृहद्रथ – हम अन्यत्र बारी तुम्हें खड्ग के साथ देख रहे है तुम्हे ज्ञान है की हमे कितनी घृणा है इन अस्त्र शस्त्रों से
सेवक बोला- प्रभु महावीर सैन्य अधिपति श्री शुंग की आज्ञा है की अन्नदाता के ऊपर शत्रु का कोई गुप्तचर किसी प्रकार की हानि न पंहुचा सके अतः आप की प्रहरीक सुरछा को और सुदृढ़ कर दिया गया है
सम्राट बृहद्रथ – उचित है किंतु हमे इन वस्तुओं से घृणा है हम शांतिप्रिय है
मंत्रणा कछ में सैन्य अधिपति श्री पुष्यमित्र शुंग अति उत्तेजित अवस्था में- सम्राट हमे आज्ञा दी जाये उन क्रूर कलंकित जनसंहारक हून, यवन, शक आतताइयों के विनाश की, आप को गुप्तचर प्रमुख से अवश्य ही सुचना हो गई होगी की सिंधु की तरफ म्लेछो ने, पुरषपुर में पर्सियन राजा दारा के प्रपौत्र ने, और गांधार की हिमालय सिंधु पर्वत की पूरी भूमि यवनो ने पददलित कर अधिभोग कर के बहु संख्या में नागरिको को प्राण हरे है इनके क्रूरतम कृत्य का दंड आवश्यक है. हमारे नागरिक अकारण ही मृत्यु के गर्त में जारहे है उनकी सुरछा हमारा, राज्य और राजा का दाईत्व है
सम्राट बृहद्रथ – सैन्य अधिपति आप को ज्ञान है की हमे कितनी घृणा है इन युद्ध, संग्राम, अस्त्र शस्त्रों से, हम शांतिप्रिय है. राज्य की नीति धर्म भी, परमपितामह महान सम्राट अशोक मौर्य की नीति का पालन हम कर रहे है. इसी कारण हमने पुरे भारतभूमि सहित विश्व में लाखो की संख्या में शांति केंद्र, स्तूप, विद्यालयों का निर्माण किया है और आप तो ब्राम्हण है आप के मुख से संग्राम, अस्त्र शस्त्रों की वार्ता उचित नहीं लगती है. क्यों न महान बौध्ध विचारक शुद्धोधन को यवनो और म्लेछो के शांति का उपदेश देने को भेजा जाये?
पुष्यमित्र शुंग पुनः उत्तेजित अवस्था में सम्भाषण करते हुए- महान बौध्ध विचारक शुद्धोधन की उन लोगो ने हत्या करदी, ये असंस्कारी अशिक्छित हून, यवन, शक आतताइयों एकमात्र खड्ग की भाषा समझते है. महान सम्राट आप की इसी नीति ने भारत वासियो को मानसिक पंगु बना दिया है हमारे नागरिक युद्ध कला और अन्य सभी प्रकार कीअस्त्र शस्त्र कला को भूल गए है जो की रक्षा के लिए अति आवस्यक है हमे सम्राट चन्द्रगुप्त ,और महान विन्दुसार की नीति की आवस्यकता है समय काल परिस्थिति की अनुसार राज्य की नीति बदलनी चाहिए यही धर्मनीति है अन्यथा पीड़ित नागरिक विद्रोह कर के आप को सत्ताच्युत कर देगे.
सम्राट बृहद्रथ अति उत्तेजित एवं क्रोधित हो कर – सैन्य अधिपति……. विद्रोह की भाषा बोल रहे है हम शांति की परमपितामह महान सम्राट अशोक की नीति पर अटल है रहेंगे.
पुष्यमित्र शुंग पुनः उत्तेजित एवं क्रोधित हो कर – महान सम्राट…… पुष्यमित्र राज्य के नागरिको को अकारण ही मृत्यु के गर्त में जाते नहीं देख सकता है, उनकी सुरक्षा हमारा दाईत्व है ये आताताई जब इस पाटिलपुत्र में प्रवेश कर इस सुन्दर राजभवन को नस्ट कररहे होगे तब भी आप शांति की नीति पर अटल रहना। मै त्यागपत्र देता हु, हम राष्ट्र पतन होते नहीं देख सकते, हम, हमारे व्यक्तिगत गण एवं सैनिक राज्य की, राज्य के नागरिको सुरक्षा करना जानते है और कर लेंगे धन्यवाद मेरी सेवा में यदि कुछ शेष रह गया हो तो छमा करे राजन।
सम्राट बृहद्रथ कुपित एवं क्रोधित हो कर उच्च स्वर में – सैन्य अधिपति……. राष्ट्रद्रोही, नीति धर्म द्रोही, सम्राट के समछ अपमानजनक वाक्यांश संभाषण, सेवको इन्हे अवरुद्ध कर बेड़ियों में बांध कर दामोदर नदी की उफनती धरा में प्रवाहित करदिया जाये.
पुष्यमित्र शुंग – हा हा हा क्या शांतिप्रिय सम्राट के शांतिप्रिय सेवक नागरिको में इतना सहस है की पुष्यमित्र को बंदी बना सके इस तेज प्रकाशित खडग का सामना करसके , एक सम्मानित नागरिक, राष्ट्रभक्त की इस प्रकार रास्त्र सेवा का परिणाम। मुर्ख सम्राट कम से कम अपने पूर्वजो की वीरता को नीतियों को स्मरण किये होते, मुर्ख सम्राट यदि अब इस सिहासन पे विराजित होना है तो केवल शुंग के इस खडग को म्यान से बहार निकाल दो, यदि न होसका तो इस सिहासन का त्याग करदो और सन्यास लेलो, अन्यथा मेरे व्यक्तिगत गण एवं सैनिक कुछ अनर्थ कर देंगे .
अंततः बृहद्रथ को को पाटिलपुत्र का त्याग करना पड़ा, इस प्रकार मौर्य वंश और शांति की नीति का शासन समाप्त हुआ पुष्यमित्र शुंग ने शासन आपने हाथों में लिया और एक विशालकाय सेना के साथ यवनो एवं शको का समूल विनाश करदिया, और पुरे भारत के लगभग पांच लाख शांति केन्द्रो को परिवर्धित परिमार्जित कर के वहा युद्ध अस्त्र शास्त्र शास्त्र विज्ञानं चिकित्सा की शिक्छा के केंद्र बनवाए, जिसके परिणाम गुप्त साम्राजय के समय आते आते भारत शिखर पे हो गया, भारत में अनेको वैज्ञानिक, चिकित्सक, युद्ध नीति के निपुण, वास्तुकार, साहित्यकार हुए, इसीकारण इतिहास में यह काल खंड स्वर्ण युग के नाम से ख्यात है I
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