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भगवान से शिकायत क्यों ?

meriawaz
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किसकी शिकायत – किस से मित्र ?
कैसा सोचा – भगवान का चित्र ?
हमारी बातें- होती वहाँ तक,
देखा हमने या सुना जहाँ तक !
सत्ताधारी की तो सत्ता –
उस से आगे भी चलती है !
उस…..से….भी……आगे…..
जहाँ शब्द – सोच की सीमाओं को-
पूर्ण विराम – लग जाता है !
मात्र समर्पण के अतिरिक्त –
विकल्प नज़र न आता है !
आप और हम भी-
उसकी महिमा को जानते हैं-
वह हमारी सुनता है-
ऐसा भी मानते हैं !
इसीलिये तो उस से –
अपने मन की कहते हैं !
मानो या न मानो मित्र –
हम और आप भी –
उस सत्ता के आधीन रहते हैं !
इसीलिये “प्रभु कृपा बनी रहे और होली शुभ हो …. ऐसा कहते है !!!!!”

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