khwahishein yeh bhi hain
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मेरा स्वप्न द्रष्टा …!
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जीवन निधि में
उसकी भूमिका और अर्थवत्ता
एक स्वप्न द्रष्टा सी थी …;
ह्रदय शीर्ष पर
उसका स्थान रिक्त था
किसी और को नहीं बिठाया था …?
असम्बद्धता के मायने !
वो,कुछ भी समझे …
त्याग,अभिमान अथवा असमर्थता ?
पर,उसे कभी भूलाया नहीं था …?
कल ! एक लम्बे अन्तराल के बाद
उसे देखा …
वो – समय की गति के साथ …
परिवर्तन के लाभ,सिद्धांत, जीवन मूल्यों की
अर्थवत्ता और सार्थकता को समझा रहा था …?
मुझे लगा !
मैं पाषण युग की खोह से निकल
उसकी परछाई को
पकड़ने का प्रयास कर रही थी ;
और मेरे अतीत का …! स्वप्न द्रष्टा …?
जीवन-निधि से निकल
वर्तमान को साथ लिए भविष्य की उड़ान पर
दूर कहीं दूर जा चुका था !
सीमा सिंह ||||
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