khwahishein yeh bhi hain
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अधिक से अधिक ?
हमारे जबड़ों में
दबे-दबे शब्दों की नमी सूख चुकी है
अतिशय में
अधिक से अधिक
हम ! रो सकते हैं
वो -भी थोड़ी देर को
क्योंकि,इन जलाशयों में भी
उबाल-लाने बाले
गर्म सोते सुख चुके है,
दोस्तों ! कभी
आप ही पूँछ के देखो
इस अतिशय,उछलते,दम्भी समन्दर से
वो ! सूरज को रोज ही निगलता है
उसकी भूख
मिटती क्यों नहीं है ??
सीमा सिंह ॥॥
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