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यही सोच कर |

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
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तुम्हारी जागती हुई तन्हाई में,
मेरी खामोशी- चुपचाप तुम्हें देखतीं है।
तुम अपने माज़ी की कश्ती में बैठ !
दूर सफर पे निकल जाते हो ।
तुम्हारी तंद्रा न टूट जाये
यही सोच कर मैं बड़ी सावधानी से,
दबे पाँव वापस लौट जाती हूँ ॥
सीमा सिंह ॥

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