khwahishein yeh bhi hain
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जमाने की खुशी में खुश नजर आती रही दुनिया,
मेरे जख्मों को सहलाने में सुख पाती रही दुनिया ॥
बदन के नाप को लेकर रही यह कश्मकश कैसी ,
जड़ों को काटकर शाखों को नहलाती रही दुनिया ॥
मजाया शहर भी हमने, अजी तुम किसकी कहते हो,
मुसीबत के ही मारों पे सितम ढाती रही दुनिया ॥
न जाने कैसे कैसे ख्वाब दिखलाती रही दुनिया ,
दिखा के इक सुघड़ तस्वीर बहलाती रही दुनिया ॥
चटकती हड्डियों में भूख का चश्मा जहां देखा ,
गुनहे गारों के हाथों न्याय करवाती रही दुनिया ॥
स्वरचित – सीमा सिंह ॥
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