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क्षमा -प्रार्थी हूँ ॥

khwahishein yeh bhi hain
khwahishein yeh bhi hain
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क्षमा -प्रार्थी हूँ ॥
बात को कहने से पहले
क्षमा -प्रार्थी हूँ ;
आनंद- मठ की यही आचार-संहिता है
ये संवाद माध्यम ,पत्राचार
तुम्हारे जीवन में
अतिरिक्त दखल देने जैसी बात है
निष्कपट मन से कहूं
बचन की प्रतिबद्धता का खण्डित करने जैसा भी है
बचन ! जो मैंने दिया और
तुमने- मांगा था
क्या तुम, यह नहीं पूछोगे ? जानना नहीं चाहोगे ?
ये- अतिरिक्त दखल और बचन की प्रतिबद्धता तोड़ने की
धृष्टता क्यों,जरूरी हुई
या यहाँ भी
आपसे-आप सुविधा-सम्पन्न अर्थ लगा लोगे ?
मैं ! बात
बीच में अधूरी नहीं छोडूगीं ?
किसी अधूरे रिश्ते की तरह !
जहां पे आकर ,अक्सर
मेरे-तुम्हारे जैसे -चूक जाते हैं और
अपने-आपको साथ-साथ दुनियावी-माया नगरी को
मन ही मन कोसते हैं ;
यही कि,आज-कल
क्यों छोड़ दिए,
शब्दों के बीज बोने
क्या तुम गोल-गोल
कोल्हू के बैल से घूमते-घूमते थक गये हो ?
क्या वैचारिक -निधि में संचित
भाव -गीत भी
पतझड़ के पत्तों से,यहाँ-वहाँ बिखर गये
सच पूछों ! यह तो होना ही था,किसी निरीह की
आह का शाप तो ! लगना ही था
पर तुम ? तुम तो विराह-वियोग के
बैरागी -मन चितेरे थे
तुम ! जंगल,रेगिस्तान के कोहसारों पे
कितने सुन्दर -सुन्दर
शब्द बीज उकेर लेते थे
थोड़ा याद करो,
क्या यहाँ भी मान लिया जाए ?
तुम राह से भटक गए ॥
सीमा सिंह ॥॥

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