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त्यागमयी नारी हरिता …!

khwahishein yeh bhi hain
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त्यागमयी नारी हरिता …!
अपने समय का सबसे ज्यादा विवादित और प्रासंगिक ग्रन्थ महाभारत में अपरोक्ष अनेको महिला चरित्र ऐसे थे जिनकी उपस्थिति के अतुलनीय त्याग और बलिदान के तमाम प्रसंग हैं ? किन्तु ! उन्हीं में एक थी आचार्य द्रोण की दूसरी पत्नी हरिता,हरिता की भूमिका आचार्य द्रोण के जीवन में …? उसी का एक तरह से यहाँ रहस्यों उद्घाटन है ,जिसके त्याग और मूक बलिदान का बहुत कम जिक्र हुआ है यहाँ उसी देवी के प्रति …!अर्थात
आचार्य द्रोणाचार्य के जीवन में
उनकी भूमिका ! पत्नी कहना ठीक न होगा ?
हरिता शुरू से जानती थीं
ज्ञान -पागल आचार्य द्रोण के लिए
उसकी उपस्थिति की अर्थवत्ता सेविका,परिचारिका और
मातृहीन शिशु अश्वत्थामा के लालन-पालन करने बाली
धात्री के सिवा कुछ नहीं है …?
आचार्य द्रोण की पुत्र अश्वत्थामा इक बड़ी दुर्बलता था
शायद !इसी भय और डर से ?
उन्होंने हरिता को
अपनी कामना की परिसीमा से दूर रक्खा ,और
स्वयं को डूबो दिया …
ज्ञान के अथाह -सागर में
हरिता ! पति के ज्ञान सरोवर तट पर
पड़ी रही खाली सीप सी और
धूल-कण से नन्हें अश्वत्थामा को गोद में लिए
अपना वात्सल्य रस उड़ेलती रही
पूरे जीवन – साधना करती रही ;
त्याग और उदारता की साक्ष्य मूर्ति बनी है
उनका उत्सर्गी कृत जीवन उदिग्न करता है …
स्वत:उनके चरणों में मस्तक झुक जाता है,
मैंने ! अर्जुन के वनबास जाने के उपरांत
उनके सानिध्य में दिन व्यतीत किये ,
पति-बिछोह की विरह,पीड़ा का दुःख …
मैं ,हरिता को देखकर ही भूल जाती हूँ;
हरिता का संयम,त्याग,कर्तव्य परायणता से
मुझे असीम शक्ति उर्जा मिलती है ;
पंचपतियों के लिए,
उचित कर्तव्य परायणता की प्रेरणा भी
उन्हीं से मिलती है ;
आचार्य द्रोण कौरवों का समर्थन करते हैं ?
कभी-कभी इस बात पर
अपना क्षोम प्रकट करती हैं …
किन्तु !अपनी अधूरी कामना के हा हा कार की बात …?
मानों, अश्वत्थामा को द्रोण आदर्श पुत्र बनाने के अलावा
उनका कोई जीवन ध्येय नहीं हैं ;
वे सब कामनाओं और वासनाओं से ऊपर उठ चुकीं हैं ;
मेरे जीवन का आलोकित प्रकाश
हरिता ही है,उनसे जैसे-जैसे घनिष्ठता प्रागंण हुई,
मन की संकीर्णता,व्यर्थ का मान,अहंकार क्रोध …,
संकुचित होता गया ;
आचार्य द्रोण सहधर्मिणी के साथ
मैं सदा पुत्र बधू सी छोटी बनी रही
मगर,वह अपनी चिरपरिचित उदारता में कहती …,
द्रुपदनन्दिनी ! आप आर्यावत की आदर्श नारी हैं ;
मुझे ,आपके सन्निकट बहुत कुछ सीखना है ;
आपका साहस,धैर्य,बुद्धिमता ,कर्तव्य परायणता और …
स्वाभिमान,हजार-हजार वर्षो बाद भी
नारी- जाति का आदर्श बना रहेगा ;
शिष्य अर्जुन के प्रति ,आचार्य द्रोण को असीम नेह है पर
उनसे अधिक गुरु माँ हरिता के मन में है ,
जब ! कौरवों की कटु बुद्धि के कारण
सत्यनिष्ठ अर्जुन जान – बूझ के बनवास गये
तब !दुखी हो कहने लगी …,
द्रौपदी !अर्जुन के प्रति अपने ह्रदय का समर्पण कम नहीं करना ,
तुम्हारे ह्रदय का समर्पण कम होने पर ?
वो,भीम की तरह दावा,शोर,विरोध नहीं करेगा
बल्कि किसी बहाने से
दूर चला जायेगा ,तुम्हारे ह्रदय प्रेम समर्पण के लिए
नीरव -साधना में लींन हो जायेगा ;
उसने ,पिछले बारह वर्षों के बनवास में
तुम्हारे प्रति अपने प्रेम-समर्पण में
नीरव-साधना के सिवा कुछ नहीं किया …!
सीमा सिंह ॥॥

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