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रिश्तों की जमीन ॥

khwahishein yeh bhi hain
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रिश्तों की जमीन ॥

ये संयम और धैर्य का धीरज
उनमें , पता नहीं
कहाँ से आ गया था
जबकि ! प्रकृति जन्य उनके स्वभाव से
परिवेश
प्रतिकूल था
एक मील का पत्थर
वो अपने-आप में थी ;
अपने मन का
स्याह पक्ष दिखाने से पहले
बात मुहँ से निकालने से पहले
सोचना जरुर चाहिये
विशेषत:! जिनके नाम,अंगूठों के निशान
सरकारी दफ्तरों के रजिस्ट्ररों से हटा दिए गये
रिश्तों की जमीन पे
भले ही,हम
विस्थापित ,रिफ्यूजी अथवा मुहाजिर क्यों न हों
उन्हें, अपनी निंदा में
अपने साथ-साथ घसीटना नहीं चाहिए ;
ये ,मेरे मन का
ओछापन ही है ? जो मानने को तैयार नहीं
कि- उनकी स्वाभाविक मौत हुई थी ?
उनके जख्मों पे
मरहम लगाने वालों की
कमी नहीं थी पर
शायद ! उनकी भी
उन्हें जरूरत नहीं थी ॥
वृद्धाश्रम में एक माँ के प्रति ये – मन के उदगार ॥
सीमा सिंह ॥

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