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क़सक दिल की (प्रेम पल्लव)

baatein aur kavitaayein
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हुई जो तुझसे बात मेरी
वो घडिया कुछ सदियों सी लगी
आवाज़ ही सुनता रह गया मै
बातें दिल की दिल में ही रही (१)

मुस्कुराई तुम तो ऐसा लगा
दिल मेरा तन्हा फिर से जगा
ना समझा तेरी बात कोई
फिर क्यों एक दर्द सा उठने लगा (२)

तू इश्क़ मेरी तू अश्क़ मेरा
बतलाने को ये कब से खड़ा
निकला वक़्त मगर आज का भी
कल का मुश्किल है इंतज़ार बड़ा(३)

कल फिर शायद तुम आओगी
मेरे दिल को फिर धड़काओगी
आंखे पढ़ लेना मेरी तुम
मेरा हाल-ए-दिल समझ जाओगी (४)

लम्बी है कितनी घडिया इंतज़ार की
कहीं सूख ना जाए पत्तिया बहार की
ऐ वक़्त तू जल्दी रुखसत हो
दिखला दे झलक मेरे यार की(५)

होते ही सुबह हम छत पे चले
वो प्रेमपत्र हाथों में लिए
जब तेरे आंगन में झाँका तो
कुछ लोग खड़े थे डोली लिए (६)

मेरे अरमानो की वो अर्थी थी
इसमें मेरी ही गलती थी
जब दिल धड़का था पहली दफा
तभी बातें दिल की कह देनी थी (७)

इतनी दूर जा चुकी हो तुम
कर के गयी मुझको गुमसुम
अब यही क़सक है साथ मेरे
काश मै दिल की लेता सुन (८)

अब कोई राह नहीं बाकी
जब चला गया मेरा साथी
जीवन की डोर जली ऐसे
तेरा इश्क़ दीया मेरा डर बाती (९)

दुनिया के सब आशिक़ सुन लो
रखा है जो दिल में वो कह दो
न रुका जहाँ रुकेगा ना कभी
अपना इश्क़ मुकम्मल तुम कर लो (१०)

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