Menu
blogid : 2486 postid : 18

भ्रष्टचार की जड़!

प्रेम रस - जागरण जंकशन
प्रेम रस - जागरण जंकशन
  • 13 Posts
  • 53 Comments
भ्रष्टाचार हमारे बीच में से शुरू होता है, हम अक्सर अपने आस-पास इसे फलते-फूलते हुए देखते हैं। बल्कि अक्सर स्वयं भी किसी ना किसी रूप में इसका हिस्सा होते हैं। लेकिन हमें यह बुरा तब लगता है जब हम इसके शिकार होते हैं। हम नेताओं, भ्रष्ट अधिकारी इत्यादि को तो कोसते हैं, लेकिन हम स्वयं भी कितने ही झूट और भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं? सबसे पहले तो हमें अपने अंदर के भ्रष्टाचार को समाप्त करना होगा। शुरुआत अपने से और अपनों से हो तभी यह भ्रष्टाचारी दानव समाप्त हो सकता है। भ्रष्ट नेता या अधिकारी कोई एलियन नहीं है, बल्कि हमारे बीच में से ही आते हैं, इस समाज का ही हिस्सा हैं। जब कोई छात्र लाखों रूपये की रिश्वत देकर दाखिला पाता है, उसके बाद फिर से रिश्वत देकर नौकरी मिलती है, तो ऐसा हो नहीं सकता कि वह नौकरी मिलने के बाद भ्रष्टाचार में गोते ना लगाए। अगर कोई शरीफ भी होता है, और हालात की वजह से रिश्वत देता है तो शैतान उसको समझाता है कि तू रिश्वत दे रहा है, जब तेरी बारी आएगी तो रिश्वत मत लेना। नौकरी लगने पर सबसे पहले वह सोचता है कि अपने पैसे तो पूरे कर लूँ, फिर धीरे-धीरे उसे आदत ही लग जाती है। क्योंकि एक बार हराम का निवाला अन्दर गया तो ईश्वर का डर अपने-आप बहार आ जाता है।

आज हर छोटे से छोटा तथा बड़े से बड़ा व्यक्ति भ्रष्टाचार में लिप्त है, चाहे वह बिना मीटर के ऑटो रिक्शा चलने वाला हो, या मिलावटी दूध या कोई और खाद्य पदार्थ बेचने वाला हो या फिर किसी सरकारी अथवा गैर सरकारी पद पर आसीन व्यक्ति। यहाँ तक कि लोगो ने धर्म को भी अपना व्यवसाय बना लिया है। हर दूकानदार किसी भी वस्तु को बेचने के लिए हज़ार तरह के झूट बोलता है। यदि उसने कोई सामान बाज़ार से ख़रीदा है 15 रूपये में तो वह बताएगा 20 रूपये, इस पर यह जवाब कि अगर झूट नहीं बोलेंगे तो काम कैसे चलेगा। यह नहीं सोचते कि जो ईश्वर अरबों-करोडो जानवरों, पेड़-पौधों को खिला कर नहीं थका, वह क्या एक इंसान को खिलाने से थक जाएगा?

असल बात यह है कि पाप पर होने वाले ईश्वर के गुस्से का डर हमारे अन्दर से निकल गया है। जिस दिन यह डर बिलकुल ही समाप्त हो जाएगा, दुनिया का अंत हो जाएगा। पश्चिम ने अध्यात्म की तरफ लौटना शुरू कर दिया है, अगर हम भी समय रहते जाग जाएँ तो आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर भारत बना सकते हैं। वर्ना भ्रष्टाचार में लिप्त दीमक लगा भारत छोड़कर जाएँगे और वह इसे और कमज़ोर ही बनाएँगे।

– शाहनवाज़ सिद्दीकी

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh