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आज पैसे और रुतबे के लोभ में इंसान बुरी तरह जकड़ा हुआ है। इस लोभ ने हमें इतना ग़ुलाम बना लिया है, कि आज हर कोई बस अमीर से अमीर बन जाना चाहता है। और इस दौड़ में यह भी देखने का समय, या यूँ कहें कि परवाह किसी को नहीं है कि पैसा किस तरीके से कमाया जा रहा है। बस एक ही कोशिश है कि चाहे किसी भी तरह आए, बस कमाई होनी चाहिए। चाहे हमारे कारण कोई भूखा सोए या किसी के घर का चिराग बुझ जाए। हमें इसकी परवाह क्यों हो? मेरे घर पर तो अच्छे से अच्छा खाना बना है, पड़ौसी भूखा सो गया तो मुझे क्या? मेरे बच्चे बढ़िया स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं, खूबसूरत लिबास उनके शरीर की शोभा बढ़ा रहे हैं। कोई अनाथ हो तो तो हो? भीख मांगने पर मजबूर हो तो मेरी बला से? मेरे और मेरे परिवार के लिए तो अच्छा घर, आरामदायक बिस्तर मौजूद है न, तो क्या हुआ अगर कुछ गरीब सड़कों पर सोने के लए मजबूर हैं। और यही सोच है जिसने आज ईमानदारी को बदनाम कर दिया है। आज के युवाओं की प्रेरणा के स्त्रोत मेहनत और ईमानदारी नहीं रही बल्कि शॉर्टकट के द्वारा कमाया जाने वाला पैसा बन गया है। बल्कि ईमानदारों को तो आजकल एक नया ही नाम मिल गया है और वह है “बेवक़ूफ़”!
“इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में थकना मना है” कि तर्ज़ पर आज के समाज का फंडा है कि “इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में सोचना मना है।”इतने व्यस्त रहो कि यह सोचने का मौका ही ना मिले कि हमने गलत किया है या सही। लेकिन इस व्यस्तता में इंसान को यह भी पता नहीं चलता कि उसकी ज़िन्दगी की दौड़ खत्म हो गयी और अब पछताने का कोई फायदा नहीं, क्योंकि बेईमानी से जो कमाया था उसपर लड़ने के लिए और मौज उड़ाने के लिए तो अब दूसरे लोग तैयार हैं। इंसान तो खाली हाथ आया था और खाली हाथ ही जाएगा…
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