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कुर्बानी क्या है?

प्रेम रस - जागरण जंकशन
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ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) का मौका आते ही मांसाहार के खिलाफ विवादित लेख लिखे जाने शुरू हो जाते हैं और ऐसा साल-दर-साल चलता आ रहा है। हालाँकि बात अगर तार्किक लिखी गयी हो तो किसी भी तरह के लेख से किसी को भी परेशानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि हर किसी को शाकाहारी अथवा मांसाहारी होने का हक है और इसी तरह अपने-अपने तर्क रखने का भी हक है। लेकिन किसी भी सभ्य समाज में इसकी आड़ में किसी धर्म को निशाना बनाए जाने का हक किसी को भी नहीं होना चाहिए।

हर एक धर्म को मानने वाला अलग-अलग परिवेश में बड़ा होता है, उनके खान-पान, रहन-सहन, धार्मिक विश्वास में भिन्नता होती है, लेकिन हम अक्सर दूसरे धर्म की बातों को अपनी मान्यताओं  और अपनी सोच के पैमाने पर तोलते हैं। और किसी भी बात को गलत पैमाने से जांचे जाने की सोच के साथ हर एक धर्म की हर एक बात पर ऊँगली उठाई जा सकती है और अगर ऐसा होने लगा तो यह समाज के लिए बहुत ही दुखद स्थिति होगी।
ईद-उल-ज़ुहा कुर्बानी का त्यौहार है, क्योंकि मांस अक्सर मुसलमानों के द्वारा भोजन के तौर पर प्रयोग किया जाता है, इसलिए इस दिन बकरा, भेड़, ऊंट इत्यादि जानवरों का मांस अपने घरवालों, गरीब रिश्तेदारों  तथा अन्य गरीबों में बांटा जाता है। हालाँकि गाय की कुर्बानी की इस्लाम में इजाज़त है, लेकिन भारत में हिन्दू धर्म के अनुयाइयों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए मुग़ल साम्राज्य के दिनों से ही गाय की कुर्बानी की मनाही है, दारुल-उलूम-देवबंद जैसे इस्लामिक संगठन भी इसी कारण हर वर्ष मुसलमानों से गाय की कुर्बानी ना करने की अपील करते हैं।

अगर मांसाहार की बात की जाए तो इसमें यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि इस्लामी मान्यता के अनुसार (बल्कि हिन्दू धर्म की मान्यता और अब तो विज्ञान के भी अनुसार) केवल जानवरों में ही नहीं बल्कि हर एक पेड़-पौधे में भी जीवन होता है, वह भी साँस लेते हैं, भोजन करते हैं, बातें करते हैं। जैसे जानवर अंडे / दूध  देते हैं उसी तरह पेड़-पौधे फल / दलहन / बीज देते हैं, जिससे की उनकी नस्ल आगे बढती रहे।  यहाँ तक कि पेड़-पौधों भी अन्य जीवों की तरह मसहूस कर सकते हैं, चाहे जानवर हो या पेड़-पौधे, दोनों को ही दुःख का अहसास होता है, यह अलग बात है की वह अपने दुःख का प्रदर्शन करने में असमर्थ हैं।  अर्थात किसी पेड़-पौधे और अन्य जीव में अंतर नहीं होता और वह भी जीव ही की श्रेणी में आते हैं। और हर एक जीव को जीवित रहने के लिए दूसरे को भोजन बनाना प्रकृति का नियम है। ठीक इसी तरह मरने के बाद दफ़नाने के विधि में शरीर ज़मीन के अन्दर रहने वाले दूसरे जीवों के भोजन के काम में आता है।

अगर बात कुर्बानी की करें तो इसमें एक बात तो यह है कि मुसलमान कुर्बानी केवल ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) पर ही नहीं बल्कि आम जीवन में अक्सर करते रहते हैं। जो कि कई तरह की होती है जैसे इमदाद के लिए जानवर की कुर्बानी, सदके के लिए कुर्बानी और ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) पर कुर्बानी इत्यादि।
  • इसमें से इमदाद अर्थात मदद करने की नियत से की गई कुर्बानी के द्वारा अपने घर वालों, रिश्तेदारों, पडौसियों और अन्य गरीबों के लिए भोजन की व्यवस्था की जाती है और इस तरह के भोजन को केवल घरवालो को ही नहीं खिलाया जाता बल्कि गरीब रिश्तेदारों, पडौसियों और अन्य गरीबों को भी भोजन कराया जाता है।
  • दूसरी तरह की कुर्बानी अर्थात सदके के लिए की गई कुर्बानी से बनने वाले भोजन को केवल और केवल गरीब लोगों को खिलाया जाता है, इसमें घरवालों का हिस्सा नहीं होता।
  •  तथा तीसरी तरह की कुर्बानी अर्थात ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) वाली कुर्बानी के लिए अच्छा तरीका यही है कि मांस अथवा पके हुए भोजन के तीन हिस्से किये जाए और उसमें से एक हिस्सा अपने घर वालों के लिए, दूसरा हिस्सा गरीब रिश्तेदारों के लिए तथा तीसरा हिस्सा अन्य गरीब लोगों के लिए निकाला जाए। हालाँकि इसमें कोई ज़बरदस्ती नहीं है, बल्कि जिसकी जैसी आस्था है वह उस हिसाब से भी बंटवारा कर सकता है।
इसमें बहुत सी अन्य दलीलों के अलावा एक बात यह भी है कि इन तीनो ही तरीकों में कोई भी मर्द / औरत चाहता / चाहती तो उसके द्वारा अपने जानवर अथवा पैसे को खुद अपने काम में प्रयोग किया जा सकता था। लेकिन उसने अपने अन्दर के लालच को कुर्बान करके अपने घरवालो, गरीब रिश्तेदारों तथा अन्य गरीबों को लिए भोजन की व्यवस्था की।
अगर बात कुर्बानी के तरीके की जाए तो यह जान लेना आवश्यक है कि मुसलमान हर एक धार्मिक कार्य पैगम्बर मुहम्मद (स.) के तरीके पर करते है, जिसे कि सुन्नत अथवा सुन्नाह कहा जाता है। सुन्नत के अनुसार ऊपर के दोनों तरीकों में भोजन के लिए मांसाहार अथवा शाकाहार दोनों में से किसी भी तरीके को अपनाया जा सकता है, लेकिन ईद-उल-ज़ुहा (बकराईद) के मौके पर केवल कुछ जानवरों को ही भोजन के तौर पर प्रयोग करने की इजाज़त है और वह भी कुछ शर्तों के साथ।
साथ ही यह बात भी जान लेना आवश्यक है कि इस्लाम में जानवरों और पेड़-पौधों पर खासतौर पर रहम और मुहब्बत का हुक्म है और भोजन जैसी आवश्यकता को छोड़कर उनका वध करना वर्जित है। यहाँ तक कि इसको बहुत बड़ा गुनाह और नरक में पहुंचाने वाला बताया गया है। बल्कि पेड़ों को पानी डालना तथा प्यासे जानवर को पानी पिलाने जैसे कामों के बदले में बड़े-बड़े गुनाहों को माफ़ करने जैसे ईनाम है।

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