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यहां सवाल भूख का है

Analytical Mind
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शहर की चकाचौंध से परे,
किसी चौक के फुटपाथ पर,
अंधेरे में बिछी-चादर के पास,
कागज पर रखी दो सूखी रोटियां,
और
कुछ आलू के टुकड़े,
यहां सवाल शौक का नहीं;
भूख का है।
सवा सौ करोड़ के इस देश में,
करोड़ों लोग ऐसे भी हैं
जो भूखे पेट ही रात के सपने देखते हैं;
और फिर सुबह चल देते हैं,
उन्हीं सपनों को लेकर,
और खो जाते हैं फिर
इस शहर की चकाचौंध में,
रोज की तरह;
यह सोचकर
कि आज तो भरपेट खाऊंगा?
क्योंकि यहां सवाल शौक का नहीं है;
भूख का है।
हां वाकई में,
यह सवाल भूख का ही है!
क्योंकि हर रोज,
हजारों मां अपने बच्चों से बिछड़ जाती है हमेशा के लिए,
वो बच्चे,
जिन्होंने बोलना और चलना तक नहीं सीखा था सलीके से;
हां यह सच है!
यह सच है इस देश का!
यह सच है उस देश का,
जिसे दूसरे देश के पीड़ितों की बहुत चिंता है!
मगर अपनों की नहीं;
अरे! वो तो मानने तक को राजी नहीं है;
कि इस देश में भूख से भी मरता है कोई?
सच में,
यहां सवाल शौक का नहीं है;
भूख का है।
नोट : यह लेखक के निजी विचार हैं और इसके लिए वह स्‍वयं उत्‍तरदायी हैं। इससे संस्‍थान का कोइ लेना-देना नहीं है।

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