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कहते हैं “आज सुखी वही है जो कुछ नहीं करता,जो कुछ भी करेगा, समाज उसमे दोष खोजने लगेगा उसके गुण भुला दिए जायेंगे और दोषों को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया जायेगा……प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में दोषी है दोष किसमे नहीं होते……आज यही कारण है कि हर कोई दोषी अधिक दिख रहा है गुणी या ज्ञानी किंचित ही दिखाई पड़ते हैं……….”
परिणाम यह है कि हमारे भारतवर्ष में यदि कोई कुछ अच्छा करे तो इतना नाम नहीं पा सकता जितना कोई अनुचित कार्य कर पा सकता है……वातावरण विभिन्न दोषों कि अशुद्धियों से बीमार है………..हमने दोषों में आनंद लेना प्रारंभ किया है……आदर्शों का मजाक बनाने में हम तत्पर हैं……हम विलाशिता के जीवन की ओर अग्रसर हैं….दोष निकालने में व्यस्त हैं…..मोह, माया, काम, क्रोध, झूठ जैसे बुराइयों की वृद्धि हुई हैं…………दोष ओर बुराई के सजग वायरस ने हमें अँधा कर दिया है……….अच्छाई कहीं दिखाई ही नहीं पड़ती……..सच्चाई एक संघर्ष बनी हुई है……….
कोई अच्छा करने का प्रयत्न करे तो मिलकर उसकी टांगे खीच ली जाती हैं…….ईमानदारी से मेहनत कर जीविका चलाने वाले व्यक्ति समाज की अंधी व्यवस्था में पिस रहे हैं……? झूठ फरेब और भ्रस्टता का आवरण ओढ़े लोग अपनी बुराई की शक्ति से फल फूल रहे हैं………हमारे सम्पूर्ण व्यवस्था में सत्ता में बैठे लोग महाभ्रस्ट हैं और उनसे नीचे उनके भ्रष्ट सेवक……..
बुराई और दोष की प्रवृति ने अपना सर्वश्रेस्ट कुरूप धारण किया है जो जितना बुरा करने में समर्थ है वह उतना श्रेष्ठ है…..ईमानदारी मुर्खता माने जाने लगी है सच्चाई और अच्छाई के प्रति हमारी आस्था हिलने लगी है………
हमारे समाज का यह रूप अत्यंत प्रलयंकारी है……….अपनी बुराई और भ्रस्ठ मानसिकता में व्यक्ति अपने कुकर्मों से प्रसन्न है …..हम और आप भी honest नहीं बनना चाहते, सच बोलने से हमें डर लगता है……अच्छा करने का प्रयत्न व्यर्थ लगने लगा है…….यहाँ न सच्चाई है और न अच्छाई…………..क्यों बनाया हमने ऐसा समाज………?
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