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ऐसी ये कैसी तमन्ना है….2

namaste!
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ख्याति और नाम की भूख लिए गुरुदास अपने माध्यमिकी की परीक्षा औसत अंकों से उत्तीर्ण होता है…..२ वर्षों तक collage के कठिन परिश्रम के पश्चात गुरुदास अपने intermediate की परीक्षा देता है………आज गुरुदास के परीक्षा परिणाम आने वाले हैं…………….
कहानी अब आगे…………

ऐसी ये कैसी तमन्ना है-2

रविवार की सुबह है सुबह की चाय ठंडी हो रही है…..पिता रामशरण स्नान कर अपने संस्कारों को पूर्ण किये चाय का आनंद ले रहे हैं…..रामसरन पास के विद्यालय मैं एक सामान्य से अध्यापक हैं ४ महीनों से उन्हें कोई वेतन नहीं मिला है…………
माँ ने गुरुदास को आवाज दी राजा बेटा!……..

    गुरुदास गहरी नींद में है…….अपने सपनों में युद्ध स्थल पर तलवार लिए शिवाजी की वेशभूषा में……अपने शत्रुओं को ललकारता हुआ…..चारों ओर जय जय कार होने ही लगती है कि बहनें कमला और अपर्णा आकर गुरुदास की प्यारी नींद तोड़ देती हैं………
    बड़ी मुश्किल से गुरुदास की आंखें खुलती हैं और ऐसे में उसे अपनी वास्तविकता से लज्जा आने लगती है………

अपने नित्यकर्म और स्नान कर गुरुदास तैयार होता है परीक्षा परिणाम देखने है……….आर्थिक आभाव के कारण नेट एवं कंप्यूटर की व्यवस्था नहीं है……
अनंतराम का घर गुरुदास के समीप है दोनों अच्छे मित्र हैं और साथ मैं अपने परीक्षा परिणाम देखने लिए इन्टरनेट की दुकान पहुँचते हैं…….गुरुदास के बहुत से मित्र वहां उपस्थित हैं गुरुदास के नगर के सभी विद्यार्थयों का वहां मेला लगा हुआ है …….
गुरुदास अपनी मित्रों के साथ का आनंद ले ही रहा था और सामने के दूरदर्शन कि दुकान मैं उसे बनवारी कि मुस्कुराती हुई तस्वीरें दिखने लगी……. न्यूज़ चैनेल्स मैं बनवारी कि तस्वीरें दिखाई जा रही थी बनवारी ने ९८% अंक के साथ अपने क्षेत्र मैं टॉप किया था……उपस्थित सभी सज्जनों का ध्यान अब बनवारी पर था……हर कोई बनवारी कि प्रशंसा करने लगा बनवारी का लाइव साक्षात्कार दिखाया जाने लगा……………. .बनवारी कि प्रशंसा आग के तरह फ़ैल गयी और उस आग मैं गुरुदास के सपने फिर से जलने लगे……….अपने परीक्षा परिणाम देखने से पूर्व ही उसकी डिग्री आधी हो गयी थी……….गुरुदास ने अपने मन को मानाने के प्रयत्न में सामने रखे अख़बार को देखना प्रारंभ किया और मुख्य पृष्ठ पर सड़क दुर्घटना में आत्माराम नामक व्यक्ति कि मौत कि खबर पढ़कर फिर से चोटिल हो उठा……..“दुर्घटना में मरे आत्माराम कि पासपोर्ट साइज़ फोटो छपी थी आत्माराम बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था……..”
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“कुछ करने कि प्रबल उत्तेजन्नाओ के बावजूद गुरुदास श्रेणी और समाज मैं अपने आपको किसी अनाज कि बोरी के करोड़ों दानो में एक साधरण दाने के अतिरिक्त कुछ और नहीं समझ पता था , ऐसा दाना कि बोरी को उठाते समय गिर जाये तो कोई ध्यान नहीं देता ऐसे समय उसकी नित्य कुचली जाती महत्वाकंषा चीख उठती कि बोरी के छेद से सड़क पर गिर जाने कि घटना ही ऐसा क्यूँ न हो जाये कि दुनिया जान ले कि वास्तव में कितना बड़ा आदमी है और उसका नाम मोटे अक्षरों में अख़बारों में न्यूज़ चंनेल्स में आ जाये”……… “गुरुदास कल्पना करने लगता है कि वह मर गया है किन्तु अपना मोटे अक्षरों के नाम और तस्वीर अखबारों और न्यूज़ चैनेल्स में देखकर मृत्यु के प्रति अजीब सी मुस्कान व्यक्त कर रहा है…….मानो भय और मृत्यु भी उसे समाप्त न कर सके…………”

अपने चिंतन मैं व्यस्त गुरुदास वापस लौटा……………..अपने घर में एक अजीब सा माहौल देखकर गुरुदास कुछ कह न पाया……..घर मैं माँ पिता जी अपनी कमला की शादी के लिए परेशान थे………अपर्णा सब को रात का भोजन परोसने मैं व्यस्त थी…..पिता रामसरन की उम्र ढलती जा रही थी……….

उम्र बढ़ने के साथ साथ गुरुदास कि जिम्मेदारियां बढती जा रही थी………पिता रामशरण को अब आर्थिक साहारे कि आवश्यकता थी परिवार में आर्थिक अभाव के कारण गुरुदास ने अपनी शिक्षा स्वेच्छा से अधूरी छोड़ दी……
ख्याति और नाम पाने का उद्देश्य अब अधूरा प्रतीत होने लगा अपने मित्र अनंतराम के साथ रोजगार के उद्देश्य से गुरुदास मुंबई चला गया……….शायद गुरुदास को अब जीवन कि वास्तविकता का अनुभव होने लगा था……….

क्या होती हैं गुरुदास की तमन्नायें पूरी……क्या होता है जब गुरुदास मुंबई मैं अपनी पहचान बनाने का प्रयत्न करता है…….अपनी आधी डिग्रियों से क्या गुरुदास कभी आगे बढ़ पाता है……..जानने के लिए देखें अगला अंक जल्द ही प्रकशित करूँगा……..
…………………………ऐसी ये कैसी तमन्ना है-3

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