मैं-- मालिन मन-बगिया की
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इस क्षण फिर से
उनकी याद आई है
अम्बुद के जज्बाती हिय से रिस रही
बूंदों के साथ
जिनकी टप-टप में भी सुनाई दे रही
उनकी वह खामोश पुकार,
वह मेरी देह को चीरकर
रूह में समाता नाद
जिसके आरोह में भी मैं हूँ
और अवरोह में भी सिर्फ मैं
जानती हूँ
अबतक अपने निश्छल-शाश्वत प्रीत से भी
उठ गया होगा उनका विश्वास
टुकड़े-टुकड़े होते ह्रदय के दर्द को भी
बस मेरा ही नाम लेकर सहा होगा उनने
उनके दृगों से रिसता हर कतरा
यही सवाल कर रहा होगा मुझसे
कि क्यों पहुंचाया मैंने उन्हें इस हालत में ?
क्या कहूँ ??
उत्तर आसान भी नहीं है
और मुश्किल भी है | |
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