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अभी हाल ही में सीबीएसई की बारहवीं का रिजल्ट आउट हुआ | वैसे तो परीक्षा-परिणाम खुद में ऐसा सदमा होता है जिससे परीक्षा में शामिल होने वाले लगभग तीन-चौथाई छात्र जूझते नज़र आते हैं | परन्तु इस बार स्थिति कुछ ज्यादा ही विकट है | दरअसल इस साल बारहवीं की परीक्षा में शामिल छात्र सीबीएसई दसवीं को २००९-१० से लागू सीसीई प्रणाली से पास करने वाले पहले बैच का हिस्सा थे |
जी हाँ ! यह वही सतत-समग्र मूल्यांकन प्रणाली है जिसके अंतर्गत विद्यार्थियों के किताबी-ज्ञान से ज्यादा उनके व्यक्तित्व-विकास पर जोर दिया जाता है | यह भी इसी प्रणाली का करिश्मा है की विद्यालयों में जिम्नास्टिक/ वर्क-एक्स्पीरिएंस की कक्षाएं न संचालित होती हों तो भी छात्रों को ग्रेड ए प्लस अथवा ए मिल ही जाता है |
ये था सीसीई प्रणाली से आपका संछिप्त परिचय | अब चलिए बारहवीं के रिजल्ट पर इसका प्रभाव देखते हैं |
परीक्षा-परिणामों की घोषणा के बाद मैं अपने जान-पहचान के ऐसे छात्रों से मिली जिनका दसवीं में ग्रेड-पॉइंट 9.6 , 9.8 अथवा 10 था | बारहवीं का प्रतिसत पूछने पर पहले तो उन्होंने झेंपते हुए बताया- 71.6, 66.4, 74.2, 79.7 | (गौरतलब है कि इस बार आईआईटी-जेईई का कटऑफ प्रतिसत 78 दशमलव कुछ है |) फिर जैसे ही मैंने प्राप्तांकों पर उनकी प्रतिक्रिया जाननी चाही उनके अंतर में रह-रहकर चुभ रहा सीसीई का दिया दंश एक आह बन जुबान पर आ गया | कुछ ऐसा बोले – ” क्लास टेंथ में सीजीपीए 10 था सो मैंने सोचा था कि ट्वेल्थ में 90 परसेंट तो आ ही जाएगा |”
पढाई को ‘बोरिंग-टास्क” बताने वाले कुछ छात्रों की बातों में यह टीस साफ़ दिखी कि यह सबक यदि दसवीं में ही मिल गया होता तो उनके पास संभलने का एक मौका रहा होता |
परन्तु अब प्रतियोगी परीक्षा में बारहवीं के परसेंटेज के आधार पर अयोग्य घोषित किये गए छात्रों के दसवीं के अंकपत्र पर सुन्दर शब्दों में लिखी सम्मोहक टिप्पड़ियों और उनका बारहवीं का अंक-पत्र एक-साथ देखने पर तो यही कहा जा सकता है कि उन्हें न माया मिली न राम !!
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