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जब मै अकेला चना बनी ……..

priyanka
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पियूष जी का ब्लॉग पढ़ा “अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता ” उसी को पढने के बाद मेरे मन में ये लिखने की इच्छा हुई ………अपनी ज़िन्दगी में शुरू से लेकर अभी तक ऐसे कई मौके आये जब मुझे चुप रहना चाहिए था पर नहीं मै चुप नही रही और ऐसे समय में किसी ने मेरा साथ नही दिया और मै अकेला चना बन गयी….अपने स्कूल का किस्सा बताती हूँ ………..मै ग्यारहवी में पढ़ती थी और जैसा की हर लड़की के साथ होता है की स्कूल या कालेज में कोई न कोई लड़का होता है जो उन्हें तंग करता है ऐसा ही कुछ मेरा साथ भी हो रहा था पर मै भी हर लड़की की तरह उस बात को अनदेखा किये जा रही थी जबकि मेरी सहनशक्ति थोड़ी कम है फिर भी अपने सामर्थ्य के बाहर जाकर भी अनदेखा कर रही थी क्योंकि ये लड़का मेरी सहेलियों का बहुत अच्छा दोस्त था लेकिन एक दिन कुछ ऐसा घटा की मैंने जाकर उस लड़के की शिकायत उस लड़के की क्लास टीचर से कर दी बस फिर क्या बात प्रधानाचार तक पहुँच गयी और उस लड़के को खूब डांट पड़ी माँ-पिता को भी बुलाया गया ………मतलब खूब खातिरदारी की गयी ……..लेकिन इन सबको करने के बाद मै बिलकुल अकेली हो गयी क्लास के लड़के तो इसे गलत कह ही रहे थे वाजिब है क्योंकि वो सब लड़के थे लेकिन मेरी सहेलिया भी मुझसे खफा हो गयी ……इस बात kaa मुझे बहुत दुःख हुआ और उस दिन पता चला की असलियत में कौन मेरा दोस्त था और कौन नही …….कुछ दिनों बाद जरुर वो सब मेरे साथ आ गए पर उस वक़्त जब मुझे गलत के खिलाफ शिकायत करनी थी तब कोई मेरे साथ नही था ये सब मुझे अकेले ही करना पडा ………और दूसरी घटना कालेज की पढ़ाई के दौरान की है …….मेरे विधि प्रथम वर्ष की परीक्षा चल रही थी मै हैरान परेशान परीक्षा हाल पहुंची क्योंकि थोड़ी देर हो गयी थी और पेपर बटने के थोड़े ही देर बाद परीक्षा हाल का नज़ारा ही बदल गया ऐसा लग ही नही रहा थी कोई परीक्षा हो रही है खुलेआम नक़ल शुरू हो गयी आज तक मैंने छोटी मोटी नक़ल ही देखी थी जैसे अगल-बगल वालो से पूछ लेना या फिर छोटे-छोटे चुटके से नक़ल करना पर यहाँ तो मेरे सामने बैठी लड़की पूरी किताब खोल के लिख रही थी मेरे बगल में बैठे लड़के ने तो पूरे नोट्स ही हाथो में ले रखे थे मुझे बड़ा अजीब लग रहा था मैंने सामने बैठे दो टीचर की तरफ देखा, जो वर्तमान राजनीती के ऊपर अपनी राय देने में व्यस्त थे …… लेकिन जैसे ही १ घंटे वाली घंटी बजी, उड़नदस्ते की टीम आने की खबर मिली दोनों टीचर्स ने फटाफट सारे बच्चो को सावधान करने का काम शुरू कर दिया…. “जिसके पास जो भी चुटके कागज़ किताब हो सब बाहर फेंक दे” और बाकायदा सबने उनकी बाते मान कर खड़ाखड़ नक़ल सामग्री फेंक दी कक्षा के उस ओर जिस ओर कोई देख न पाए …….ये देखकर मुझसे नही रहा गया और मैंने खड़े होकर कहा की जो काम आप अभी कर रहे है वो काम आपको १ घंटे पहले करना चाहिए था तब इस परीक्षा का कोई मतलब था आप टीचर होकर हम जैसे छात्र जो रात रात भर पढ़ कर आते है उनका भविष्य क्यों बर्बाद कर रहे है…….मेरा इतना कहना था की सारे छात्र गण खर्चा पानी लेकर मुझपर बरस पड़े की….. आप के पेट में क्यों दर्द हो रहा है आप भी कर लीजिये, सारी वकालत आप यही कर लेंगी हमारे साथ, और बाते तो अब मुझे याद ही नही है पर इतने सारे लडको की बाते सुनकर मै सकपका कर बैठ गयी क्योंकि वैसे चाहे मै जितनी झांसी की रानी बनने की कोशिश करू मन से और तन से हूँ तो मै लड़की …………..इस वाकये के दौरान भी मै अकेले ही रह गयी जबकि मेरी तरह न जाने कितने छात्र थे जो नक़ल नही कर रहे थे और उनकी संख्या नक़ल करने वालो से ज्यादा ही थी पर कोई भी खडा नही हुआ ……लेकिन haan जब dusra papar dene गयी तो ये huaa की जो nakal khule aam हो रही थी वो अब thodi तो dhanki munde taur पर होने lagi और shikshak भी thodaa dhyaan dene lage …….तीसरी घटना हास्पिटल की है….. जिस का भी सगा सम्बन्धी बीमार पडा हो और उसका हास्पिटल से वास्ता पडा होगा उसे पता होगा की जितना हम बीमार की बीमारी से दुखी नही होते है उतना हास्पिटल की कार्यविधि से, मरीज़ को एडमिट करवाना हो तो, छुट्टी करवाना हो तो हज़ार दिक्कते …..बात एक डेढ़ साल पहले की है मै मम्मी की हॉस्पिटल से छुट्टी करवा के ले जा रही थी लेकिन ७ दिन बाद उन्हें फिर एडमिट करवाना था इसलिए मैंने ऐडमिसन डिपार्टमेंट में जाकर ७ दिन बाद की कमरे के लिए बुकिंग करवा दी और बुकिंग करवाने वालो में मम्मी का नाम सबसे ऊपर लिखा गया …….लेकिन जब एक हफ्ते बाद हम हास्पिटल आये और ऐडमिसन के लिए कमरे के बारे में पुछा तो उसने कहा की अभी कमरा खाली नही है कुछ देर इंतज़ार करिये मै फिर थोड़ी देर बाद गयी लेकिन फिर वही जवाब इस तरह एक घंटे बीत गए और मम्मी की हालत बिमारी से कम बैठे बैठे ज्यादा खराब होने लगी मेरे आस-पास बैठे लोग भी शिकायती लहजे में कहने लगे की ये लोग ऐसा ही करते है ऊपर जाकर देखो तो पता चलेगा की कमरे खाली है पर यहाँ पूछो तो कहते है की खाली नही है……मुझे अपने ऊपर बड़ी गुस्सा आई क्योंकि मैं खुद आगे बढ़ कर मम्मी को एडमिट करवाने के लिए लेकर आई थी दादा(बड़े भैया) और अपने पतिदेव से कह दिया था की मै सब कर लुंगी लेकिन २ घंटे होने को आ रहे थे और कमरे का कोई अता-पता नही था इस बार मै फिर एड्मिसन डिपार्टमेंट वालो के पास गयी और उस एडवांस बुकिंग के बारे में पुछा लेकिन उन्होंने कहा की इस नाम से कोई बुकिंग ही नही है अब मेरा सर चकराया और उनसे जब पूछना शुरू किया की मै तो एक हफ्ते पहले ही एडवांस बुकिंग करवा के गयी थी फिर क्या हुआ पर वो मानने को ही तैयार नहीं …….. और बस यही कहे की कोई कमरा खाली नहीं है……. अब मेरे सब्र का बाँध टूट गया पर मैंने यही सोचा की परेशान होने से कुछ नही होगा और वापस बिना एडमिट kerwaaye गयी तो सबकी डांट पड़ेगी और मम्मी को जो परेशानी हो रही है सो अलग मै पहले तो फट से ऊपर गयी और खाली कमरों के नंबर एक कागज़ पर नोट किये और फिर से दोबारा एड्मिसन डिपार्टमेंट वालो के पास पहुंची उनकी खबर लेने और उसके बाद ढेर सारी बहस और जोर जोर से चिल्लाने के बाद यानि पूरे आधे घंटे बाद उन्होंने अपनी गलती मानी और मम्मी को एडमिट किया लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में वो लोग जो दो घंटे तक मेरे आस-पास बैठे थे और शिकायत किये जा रहे थे की की एडमिट करवाने में कितनी दिक्कते होती है वगैरह वगैरह उनमे से किसी ने भी मेरा साथ नहीं दिया न ही वो सब चुपचाप खड़े होकर हो रहे तमाशे का मज़ा ले रहे थे क्योंकि इस पूरे घटनाक्रम में हास्पिटल के बड़े बड़े विभागाध्यछ आ कर मेरे सर पे खड़े हो गए थे और सब ये साबित करने की कोशिश कर रहे थे की मै बेकार ही छोटी सी बात को तूल देकर उनके बड़े से हास्पिटल का नाम खराब कर रही हूँ ……….. पर इन सारे वाकयों से मैंने यही सीखा की अगर आप सही हो तो चाहे आपके साथ कोई न हो पर अंत में जीत आपकी ही होगी और जितने की लिए आपको हिम्मत तो करनी ही होगी सर पर हाथ रख कर बैठने से किस्मत को कोसने से या फिर पीछे हटने से आप कुछ नही बदल सकते अगर आपको अपने आसपास कुछ बदलना है तो सिर्फ बाते करने से या लिखने से कुछ नही होगा इसके लिए आगे कदम भी बढ़ाना होगा ………. “शुभ संध्या”…………

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