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जागो हमारी नदिया मैली हो रही …!!!

priyanka
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अभी कुछ दिनों पहले मै जबलपुर में थी …..जो मध्य प्रदेश में है … जबलपुर भेडाघाट, नर्मदा नदी, और संगमरमर के पत्थरो के लिए प्रसीद्ध है….. दूर दूर से लोग भेडाघाट का दुधिया जल प्रपात देखने आते है …….. इसलिए हम सब भी वहाँ गए ………. साथ में मेरी दादी भी थी …. हमारे लिए तो वो एक पिकनिक मनाने की जगह थी पर उनके लिए तो नर्मदा मैया थी ……….. और उनका स्नान करने का मन कर रहा था … उन्हें वहाँ स्नान करने के लिए मना करने पर वो थोड़ा उदास हो गयी ….तो उन्हें ग्वारीघाट जहां नर्मदा माँ का मंदिर है वहाँ ले गए स्नान कराने के लिए ………..वहाँ स्नान के लिए घाट बने हुए है और नदी के बीच में नर्मदा माँ का छोटा सा मंदिर है ……….. पर वहाँ पहुँचने पर वहाँ की दशा देखकर मन में श्रद्धा की जगह कुछ और ही भाव मन में आये ……..चारो ओर नहाने वालो का जमावड़ा लगा हुआ था ………ऐसा लग रह था की वो नर्मदा नदी का घाट नहीं स्नानघर हो ……….. हर व्यक्ति उस घाट को अपना व्यक्तिगत स्नानघर समझ कर बैठा हुआ था …… आराम से साबुन रगड़ रगड़ कर नहाये पड़े है ……….नाक साफ़ कर रहे है …और फिर उसी पानी से कुल्ला कर रहे है … कुछ लोग ने सोचा की जब खुद नहा चुके है तो लगे हाथ कपड़ो को भी नहला लिया जाये वो भी बकायदा साबुन लगा कर …….. और फिर पूजा करने की बारी आती है इतने अच्छे से स्नान करने के बाद पूजा-ध्यान तो होगा ही …….. तो अगरबत्ती को तो घाट के किनारे में जगह बना कर खोंसा जा रहा था जो आते जाते लोगो की साड़ियो में जगह जगह छेद करती जा रही थी और साथ में जलाती भी जा रही थी ….. अगरबत्ती से जला इंसान यही कह सकता है ……..”देखन में छोटे लगे पर घाव करे गंभीर” और जितना भी प्रसाद था वो सब नर्मदा माँ के जल में अर्पण वो तो भला हो उन छोटे छोटे बच्चो का जो उस प्रसाद को कूद कूद कर निकाल लाते थे पर हमारे भक्तगण भी क्या कम थे वो ऐसा निशाना साध कर मारने की कोशिश में थे की प्रसाद उन बच्चो की पहुँच से दूर ही गिरे ……..जो कार्य हमारी सरकार या नगर-निगम को करना चाहिए वो ये छोटे बच्चे कर रहे थे स्वार्थ वश ही सही पर नर्मदा माँ को प्रदूषित होने से तो बचा रहे थे ……… और रही सही कसर वहाँ घुमने वाले गाय भैंसों और कुत्तो ने पूरी कर दी थी अपना प्रसाद जगह जगह जमीन पर गिरा कर ………..खैर इसमें मै पूरा दोष नगर-निगम वालो को नहीं दूंगी …….कुछ गलती तो हमारी स्वयं की भी है ………. हम हिन्दुओ को मन में धार्मिक भाव इतने चरम पर होते है की पूजा करने के जोश में हम होश खो बैठते है और ये ध्यान ही नहीं देते है की जिस नदी को देवी मान कर पूजा अर्चना कर रहे है असल में हम अपनी पूजा के कारण उन्हें प्रदूषित कर रहे है ………… ऐसा ही हाल मैंने मिर्ज़ापुर(उ.प्र.) की विंध्यवासिनी देवी स्थल पर भी देखा …………वहाँ पर मै अभी से ६-७ साल पहले गयी थी वहाँ पर तो पंडो की पूरी फ़ौज होती है आपको दर्शन करवाने की लिए……… पर गंगा नदी के घाट का नज़ारा नर्मदा नदी जैसा ही था ……..सफाई के मामले में तो गंगा नदी इतिहास रच सकती है फिर वो चाहे इलाहाबाद की गंगा नदी हो हरिद्वार की गंगा नदी हो या फिर वाराणसी की गंगाजी हर और गंगानदी का स्वागत भक्तगण पूरी भक्ति भाव से करते है .. …………..और हमारी प्यारी दिल्ली की यमुना नदी वो भी कहाँ पीछे रह सकती है ……… इसमें मुझे स्वामी चैतन्य कीर्ति की कही हुई एक कथा याद आ गयी की ” एक आदमी नयी दिल्ली में मरा नर्क के द्वार पर उसने दस्तक दी..शैतान ने द्वार खोला, नाम-धाम पता-ठिकाना पुछा.. जब उसने कहा की नयी दिल्ली से आया हूँ तो शैतान ने कहा की भाई तुम नर्क में काफी में रह लिए, अब और नर्क में आने की कोई जरुरत नही … और जो तुम देख चुके हो नयी दिल्ली में उससे ज्यादा हमारे पास दिखाने को कुछ भी नही … अब तुम स्वर्ग जाओ तुम स्वर्ग के योग्य हो गए …पर्याप्त भोग चुके नरक अब और क्या भोगना है ? यहाँ किसलिए आये हो ? अभी तृप्ति नहीं हुई? ” ………….वैसे जो भी दिल्ली में रहता है वो इस कथा से पूरी तरह सहमत होगा राष्ट्र मंडल खेल समाप्त होते ही सफाई व्यवस्था फिर पुराने ढर्रे पर लौट आई है ………… पर हमारी नदियों को क्या कसूर है ………… वो बिचारी क्यों हमारी गलतियों-पापो की सजा भुगत रही है ……… केवल सफाई के दृष्टिकोण से ही नहीं अगर पर्यटन के दृष्टिकोण से भी देखा जाये तो भी बहुत जरुरी है की हम अपनी नदियों की स्वछता का विशेष ख्याल रखे……….. दुनिया के हर कोने से पर्यटक हमारे देश में आते है और सोचिये जब वो यहाँ आकर गंगा नदी के तट को सुबह सुबह निहारते है तो उन्हें वहाँ क्या दिखाई देता है की उस शहर के निवासी उसे शौचालय की तरह इस्तेमाल कर रहे है वो विदेशी हमारे बारे में क्या सोचते होंगे ये तो भूल ही जाइए ……..हम ये नही ही जानना चाहेंगे ……….. और सरकार को भी कितना कोसो …………कुछ असर ही नहीं होता ……. एक पूरा का पूरा पर्यटन मंत्रालय खडा किया गया है इन्ही सब कार्यो के लिए की देश के पर्यटन स्थलों को समृद्ध और स्वच्छ बनाया जाये ……पर पता नहीं वो विभाग क्या करता है ……….. वैसे सच बताऊ तो मुझे हमारे देश के पर्यटन मंत्री का नाम भी नहीं पता और मेरे जैसे कई लोगो को नहीं पता ……….अगर मंत्री जी कुछ करेंगे तभी तो नाम भी पता होगा ……….. इन नदियों की स्वछता का कार्य कोई बड़ा कार्य भी नहीं है और कई हज़ार करोणों की भी आवश्यकता भी नहीं है …………केवल राष्ट्र मंडल खेलो का आयोजन कर लेने भर से ही देश का नाम नहीं हो जाएगा ……. इन छोटे छोटे कार्यो को कर लेने से भी हमारी देश की सुन्दरता में चार चाँद लग जायेंगे …………….वो तो हमारी प्यारी नदिया है जो अनवरत बहती रहती है नहीं तो हम सब जितनी गन्दगी उनमे फैलाते है उतनी गन्दगी किसी तालाब में इकट्ठी हो तो हमें समझ में आ जाएगा की हम क्या कर रहे है और उसका परिणाम क्या है ……….. वैसे केवल सरकार और नगर निगम ही नहीं जरुरत है हमें अपने दृष्टिकोण को भी बदलने की हम भी कुछ समझदारी से काम करे तो बहुत कुछ कर सकते है जिनसे हमारी पावन नदिया सच में निर्मल और स्वच्छ रह सकती है ………….. हमें सबसे पहले तो पूजनीय नदियों में यदि स्नान करने का मन भी है तो सिर्फ स्नान ही करना चाहिए ……….साबुन शम्पू का इस्तेमाल नही करना चाहिए और पूजा अर्चना करते वक्त सिर्फ हाथ जोड़ कर मन में पूरी श्रद्धा से ही मंत्रोचारण कर लेना चाहिए …..फूल, नारियल, मिश्री,रेवरी, न ही डाले तो अच्छा होगा…… कई लोग सुबह सुबह घर से लोटा लेकर पूजनीय नदी के घाट की ओर न आये तो अच्छा ही हो ………….. ठीक इसी तरह जो मुंडन संस्कार होते है उसे करने के बाद बाल वगैरह नदी में न बहा दे ………इसी तरह और भी कई काम है जिनके न करने से हमारी धार्मिकता तो कोई कमी नहीं आएगी पर हाँ हमारी नदिया जरुर निर्मल और स्वच्छ हो जाएगी ………… “शुभ संध्या”

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