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योग को धार्मिक चश्मे से ना देखें

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योग को धार्मिक चश्मे से ना देखें।
21जून को भारत के साथ साथ लगभग 190 देशों ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जिसमें कुछ इस्लामिक राष्ट्र भी थे ।देश में कई जगह योग शिविर लगाकर नेता से लेकर उच्चाधिकारी तक सभी ने योग किया। योग से शरीर के साथ साथ मन को भी स्वस्थ रखा जा सकता है। योग एक प्रकार का व्यायाम है। अक्सर लोग शरीर को चुस्त दुरूस्त रखने के लिए जिम में कई घंटों तक वर्कआउट करते हैं जिससे शरीर स्वस्थ रहे परन्तु योग करने से शरीर के साथ साथ मन को भी स्वस्थ रहता है । योग भारत की प्राचीन संस्कृति है जिसे यहाँ के ऋृषि मुनि शरीर और मन को स्वस्थ रखने के लिए किया करते थे।आज के भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगों को स्वस्थ रहना जरूरी है।छोटी छोटी शारीरिक परेशानियाँ भी जीवन की गति को धीमा कर सकती है। ऐसा कहा जाता है कि योग करें निरोग रहें। शरीर और मन को स्वस्थ रखने में योग की भूमिका महत्वपूर्ण है तभी योग को संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ साथ सैकड़ो देशों ने जरूरी बताया और अपनाया। कुछ लोग योग को भी धार्मिक चश्मा लगाकर देख रहे हैं इसलिए उन्हें योग भी किसी विशेष धर्म से जुड़ा हुआ दिखाई दे रहा है।यह बात सही है कि इसकी उत्पत्ति हिन्दू धर्म को मानने वाले ऋषि मुनियों ने ही किया है परन्तु इस बात के लिए योग को विशेष धर्म से जोड़ना गलत है।हाल ही में योग को सर्वस्वीकार्य बनाने के लिए ऊँ का उच्चारण तथा सूर्य नमस्कार को योग से हटा दिया गया है इसे हटा देने के बाद योग आधा अधूरा ही बचा है। ऊँ का उच्चारण तथा सूर्य नमस्कार को हटाने से जैसे किसी चार पहिया वाहन से एक पहिया हटा देने के समान है। योग स्वस्थ तन तथा मन के लिए किया जाता है जो पूर्ण योग किए बिना असंभव है। किसी व्यायाम को धर्म से जोड़ना तथा बाद में दबाव के कारन कुछ भाग को हटाना दोनो ही बातों में ओच्छी मानसिकता झलकती है।यदि योग को किसी धर्म विशेष से जोड़कर देखा जा रहा है तो योग के मुख्य अंश को हटाकर इसे अन्य धर्मों के लोगों पर थोपने का निर्णय सही नहीं है। योग को व्यायाम की दृष्टि से निरोग रहने के लिए किया जाने प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए ना कि किसी धर्म से जोड़कर।कुछ लोग खुद को सेकुलर बतलाकर योग से दूर रह रहे हैं ऐसे लोगों की मानसिकता सिर्फ वोट बैंक के जुगाड़ में रहने की है ।योग तन और मन को स्वस्थ रखने के लिए किये जाने की आवश्यकता है।

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