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झारखंड,स्थानीय नीति और राजनीति
झारखंड को अलग प्रान्त बने एक अरसा बीत गया लेकिन प्रदेश के लोगों को आज तक उनकी पहचान नहीं मिल पाई है । राज्य गठन के बाद अभी तक ९ मुख्यमंत्री बदल चुके हैं साथ ही महज १६ वर्ष के इस राज्य में ३बार राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है । राज्य में सरकारी रिक्त पदों पर अपेक्षाकृत बहुत कम बहाली हुई है। प्राथमिक विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक शिक्षकों की कमी है।शिक्षा क्षेत्र के अलावा अन्य विभागों में भी रिक्त पदो को नहीं भरा जा सका है। शिक्षित अशिक्षित मिला कर राज्य मे लगभग ९० लाख बेरोजगार लोग हैं ।
झारखंड के साथ ही अलग हुए दो प्रान्तों में अलग होने के १ वर्ष के अंदर ही स्थानीयता परिभाषित कर दी परन्तु प्रदेश में आज तक स्थानीयता परिभाषित नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण है। झारखंड वासियों को झारखंडी की पहचान नहीं मिल सकी है। देश के लगभग सभी प्रान्तों में स्थानीय नीति लागू है । झारखंड में अस्थिर सरकार ,सरकार का पूर्ण बहुमत में नहीं होना ,ओच्छी राजनीति आदि कारणों से स्थानीयता लागू नहीं हो सकी । प्रदेश में स्थानीयता को लेकर सिर्फ राजनीति और बयानबाजी ही हुई है। झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री का कहना है कि जब तक स्थानीयता परिभाषित नहीं हो जाती किसी भी सरकारी पद पर बहाली नहीं किया जाना चाहिए परंतु श्री मरांडी ने अपने २७ माह कार्यकाल में डोमिसाइल लागू करने के बात से सूबे में भूचाल खड़ा कर दिया और अन्ततः कोई ठोस निर्णय के अभाव में उनका प्रयास असफल रहा ।अपने कार्यकाल में सर्वसम्मति से कोई और रास्ता निकाल सकते थे और स्थानियता परिभाषित कर सकते थे चुकी उनकी सरकार पूर्ण बहुमत की थी । राज्य के आठवें मुख्यमंत्री श्री हेमंत सोरेन का कहना है कि यदि रघुवर सरकार स्थानियता परिभाषित किए बगेर सरकारी पदों पर बहाली करती है तो बाहरी लोगो को ईंट से मारो ।उनका यह बयान गेरजिम्मेदाराना है क्योंकि श्री सोरेन ने अपने १४ माह के कार्यकाल में एकबार भी स्थानियता की बात नहीं की । जेएमएम ने झारखंड को अलग राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाई है । झारखंडियों के लाभ के लिए स्थानीयता परिभाषित करना श्री सोरेन की प्राथमिकता होनी चाहिए थी। वर्तमान मुख्यमंत्री श्री रघुवर दास स्थानियता परिभाषित करने के लिए रोज तारीख पे तारीख दे रहे हैं ।स्थानियता पर श्री दास का रवैया टालमटोल है । जबभी विधानसभा में बात होती है या मीडिया द्वारा सवाल किया जाता है कोई एक तारीख में स्थानीयता परिभाषित करने की बात कर राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री अपना पिछा छुड़ा लेते हैं । सरकार को सर्वदलीय बैठक कर स्थानियता पर गंभीरतापूर्वक विचार कर लागू करने की आवश्यकता है ताकि झारखंड में झारखंडियों को प्राथमिकता मिले और अलग राज्य होने के नाते प्रदेश के लोगो को अलग पहचान मिल सके ।
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