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आखिर किसान क्यों करे खेती

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आखिर किसान क्यों करे खेती?

देश के किसान बदहाली के शिकार हैं।केंद्र सरकार द्वारा जारी आर्थिक सर्वेक्षण आंकड़े के अनुसार प्रत्येक दो में से एक किसान पर 47 हजार रुपये का कर्ज है।लगातार कर्ज के बढ़ने से किसानों के आत्महत्या की घटनाएं भी बढ़ रही है।राष्ट्रीयकृत बैंको द्वारा किसानों को आसानी से कर्ज मुहैया नहीं कराया जाता है जिस वजह से किसानों को महाजनों,सूदखोरों से अधिक ब्याज दर पर ऋण लेना पड़ता है।सूखे जैसी प्राकृतिक आपदा के कारण किसानों द्वारा खेती पर खर्च की गई मूलधन राशि भी प्राप्त नहीं हो पाती।किसानों को अन्नदाता कहा जाता है लेकिन सरकार की उपेक्षा के कारण ये अन्नदाता आज खुद अन्न के मोहताज बन गये हैं। सरकार द्वारा सिंचाई योजना पर करोड़ों रुपए खर्च किए गये हैं लेकिन धरातल पर योजना की स्थिति कुछ और ही है।अधिकांश सिंचाई योजना पर ठेकेदारी के अलावा कुछ नहीं हुआ।सिंचाई योजना को जैसे तैसे पूरा कर पैसे की निकासी कर ली गई।सरकार द्वारा किसानों को ऋण मुहैया कराने के उद्देश्य से किसान क्रेडिट कार्ड शुरू किया गया है लेकिन कागजी झमेले के कारण निम्न वर्ग तथा मध्यम वर्ग के किसान इस लाभ से वंचित हैं।कुछ किसानों ने किसान क्रेडिट कार्ड के तहत ऋण लिया भी है तो बिचौलियों द्वारा ऋण दिलाने के एवज में उनसे मोटी रकम ली गई है ।किसानों को सस्तीदर पर तथा कम कागजी झमेलों पर ऋण मुहैया कराकर सरकार किसानो के हित मे काम कर सकती है ।किसानो की तीसरी समस्या सरकार द्वारा अनाजों पर न्यूनतम सार्थक मूल्य को बहुत धीमी गति से बढ़ाना है ।गैर कृषि उत्पादों के मूल्य में जिस प्रकार वृद्धि हुई है फसलों के दाम अपेक्षाकृत कम बढ़े हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो आजादी के बाद 1970 में धान का न्यूनतम सार्थक मूल्य 51 रूपये प्रति क्विन्टल था । वर्ष 2016 में धान का न्यूनतम सार्थक मूल्य 1470 रूपया प्रति क्लिंटन है । 46 वर्षों में धान की कीमत मे 1419 रूपये की वृद्धि हुई है यानि 29 प्रतिशत दाम बढ़े हैं जबकि सरकारी कर्मचारियों के वेतन 1970 में कम से कम 100 रूपये था जो 2016 में बढ़कर 18000 रूपये हो गया है यानि 180 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।आंकड़ों से अनुमान लगाया जा सकता है कि किसानों के प्रति सरकार कितना गंभीर है।विद्वानों का मानना है कि फसल के न्यूनतम सार्थक मूल्य बढ़ने से मंहगाई बढ़ जाएगी।सरकारी कर्मचारियों के वेतन से लेकर गैर कृषि उत्पादों के दाम बढ़ने से मंहगाई नहीं बढ़ती लेकिन किसानों के फसलों के न्यूनतम सार्थक मूल्य बढ़ाने से अगर मंहगाई बढ़ती है तो सरकार को कोई अन्य विकल्प निकालने की जरूरत है ।किसानों के फसलों के न्यूनतम सार्थक मूल्य बढ़ाने से अगर मंहगाई बढ़ने का डर है तो किसानों के बैंक खातों में बढ़े दामो को भेज दिया जाए जिससे किसानों को लाभ भी मिल जाएगा और मंहगाई भी बढ़ने की उम्मीद कम होगी। किसानों के आय का मुख्य स्रोत खेती ही है किसानो को उनके मेहनत का उचित मूल्य मिलना चाहिए। सातवें वित आयोग की सिफारिश मान लेने के बाद लगभग 1 करोड़ केंद्रीय कर्मचारियों के बढ़े वेतन से सरकार को सलाना 1.02 लाख करोड़ का अतिरिक्त भार उठाना पड़ेगा। ऐसा होने से किसान खेती छोड़ने के लिए विवश नहीं होगें और अन्य लोगों की भांति अपने परिवार का भरणपोषण कर सम्मान जनक जीवन जी पायेगें ।किसानो के समक्ष चौथी ससमस्या अनाज के भंडारण की है।किसानों को उपजाई गई फसल के भण्डारण की व्यवस्था नहीं होने के कारण मेहनत से उपजाई फसल को जमाखोरों के हाथों ओने पोने दामों में बेचना पड़ता है और बाद में जमाखोर इसे अपनी मर्जी से बाज़ार में दाम तय कर फसल को बाजार में उपलब्ध कराता है जिससे बढ़े हुए दामों का लाभ किसानों को मिलने की बजाय जमाखोरों को मिलता है ।फसलों के भण्डारण के लिए समुचित कोल्ड सटोरेज की व्यवस्था सरकार द्वारा किए जाने से किसान अपने फसल को रख पायेगे तथा मनमुताबिक फसलों को बेच पायेगे जिससे अनाजो के बढ़े दामों का लाभ सीधे किसानों को मिलेगा। सरकार को किसानों की समस्या पर गंभीरता पूर्वक विचार कर उचित कदम उठाने की दरकार है ताकि किसान खेती छोड़ने को मजबूर ना हो।

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